Sunday, 15 January 2017

जमीन पर बैठकर भोजन करने के हैं अनेकों फायदे :---

जमीन पर बैठकर भोजन करने न केवल हमारी संस्कृति का हिस्सा है बल्कि सेहत के लिए भी वैज्ञानिक आधार रखता है ! आज कल के लोग या तो टीवी के सामने बैठकर या बिस्तर पर बैठकर ही भोजन करना पसंद करते हैं ! भले ही, यह आपके लिए बहुत आरामदायक हो, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है ! भारत एक ऐसा देश है जहाँ आज भी कई घरों में खाना जमीन पर बैठ कर ही खाया जाता है ! खाने का ये तरीका सेहत के लिए भी उपयोगी है !
जब भारतीय परंपरानुसार हम जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं तो उस तरीके को सुखासन या पद्मासन की तरह देखा जाता है ! यह आसन हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभप्रद है ! इस तरीके से बैठने से आपकी रीढ़ की हड्डी के निचले भाग पर जोर पड़ता है, जिससे आपके शरीर को आरामदायक अनुभव होता है ! इससे आपकी सांस थोड़ी धीमी पड़ती है, मांसपेशियों का खिंचाव कम होता है और रक्तचाप में भी कमी आती है ! भोजन करने के लिए जब आप पद्मासन में बैठते हैं तब आपके पेट, पीठ के निचले हिस्से और कूल्हे की मांसपेशियों में लगातार खिंचाव रहता है जिसकी वजह से दर्द और असहजता से छुटकारा मिलता है ! इस मांसपेशियों में अगर ये खिंचाव लगातार बना रहेगा तो इससे स्वास्थ्य में सुधार देखा जा सकता है ! जमीन पर बैठना और उठना, एक अच्छा व्यायाम माना जाता है !
भोजन करने के लिए तो आपको जमीन पर बैठना ही होता है और फिर उठना भी, अर्ध पद्मासन का ये आसन आपको धीरे-धीरे खाने और भोजन को अच्छी तरह पचाने में सहायता देता है ! जमीन पर बैठने के लिए आपको अपने घुटने मोड़ने पड़ते हैं ! इससे आपके घुटनों का भी बेहतर व्यायाम हो जाता है, उनकी लचक बरकरार रहती है जिसकी वजह से आप जोड़ों की समस्या से बचते हैं ! क्रॉस लेग्स की सहायता से जमीन पर बैठने से आपके शारीरिक आसन यानि कि पोस्चर में सुधार होता है ! स्वस्थ शरीर के लिए सही आसन बहुत जरूरी है, इससे आपकी मांसपेशियों को मजबूती मिलती है लेकिन साथ ही साथ रक्त संचार में भी सुधार होता है ! सही पोस्चर में बैठने से आपके शरीर में रक्त का संचार बेहतर होता है और साथ ही साथ आपको नाड़ियों में दबाव भी कम महसूस होता है ! पाचन क्रिया में रक्त संचार की एक अहम भूमिका है !
पाचन क्रिया को सुचारू रूप से चलाने में हृदय की भूमिका अहम होती है ! जब भोजन जल्दी पच जाएगा तो हृदय को भी कम मेहनत करनी पड़ेगी ! जब आपका हृदय, शरीर और मांसपेशियां स्वस्थ रहेंगी, आपके शरीर में रक्त का संचार बखूबी होगा तो जाहिर है यह आपकी दीर्घायु की गारंटी बन सकता है !
इसके अलावा जब आप परिवार के साथ जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं तो आपका ध्यान खाने में रहता है ! यह केवल आपके ध्यान को ही खाने पर केंद्रित नहीं करता, बल्कि खाना खाते समय बेहतर विकल्प को चुनने में भी मदद करता है, क्योंकि इस मुद्रा में आपका मन बहुत शांत और आपका शरीर पोषण को स्वीकार करने के लिए तैयार रहता है ! जमीन पर बैठकर भोजन करने की प्रथा सही मात्रा में खाना खाने के लिए और सही प्रकार का भोजन करने के लिए सबसे अच्छी है !
तो फिर अगली बार से जमीन पर बैठकर भोजन करने में शर्म महसूस मत कीजिए ! वैसे भी हमारे पूर्वजों ने जिस परंपरा को बनाया है, वह गलत तो नहीं हो सकती इसलिए आवश्यकता है कि उनकी वैज्ञानिकता को समझकर व्यवहार करें !
 राजेंद्र अग्रवाल

Saturday, 14 January 2017

एलोवेरा जूस के ये फायदे देख कर आप दंग रह जाएंगे

एलोवेरा एक औषधीय पौधा है और यह भारत में प्राचीनकाल से ग्वारपाठा या धृतकुमारी नाम से जाना जाता है। यह कांटेदार पत्तियों वाला पौधा है जिसमें
रोग निवारण के गुण भरे हैं। औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी भी कहा जाता है। इसे साइलेंट हीलर तथा चमत्कारी औषधि भी कहा जाता है।
एलोवेरा के जूस का सेवन करने से शरीर में होने वाले पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है. एलोवेरा में एक जड़ी-बूटी की तरह कई गुण होते हैं. चेहरे के लिए अमृत और औषधीय गुणों का भण्डार है एलोवेरा.
इसकी 200 से ज्यादा प्रजातियां हैं लेकिन इनमें से 5 प्रजातियां हीं हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। रामायण, बाइबिल और वेदों में भी इस पौधे के गुणों की चर्चा की गई है। एलोवेरा का जूस पीने से कई वीमारियों का निदान हो जाता है।
आयुर्वेदिक पद्धति के मुताबिक इसके सेवन से वायुजनित रोग, पेट के रोग, जोडों के दर्द, अल्सर, अम्लपित्त आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं। इसके अलावा एलोवेरा को रक्त शोधक, पाचन क्रिया के लिए काफी गुणकारी माना जाता है।
एनर्जी बढ़ाये
नियमित रूप से एलोवेरा जूस को पीने से
एनर्जी आती है। एलोवेरा जूस में कई तरह के
पोषण तत्व, विटामिन और मिनरल होते है जो बॉडी सिस्टम को सुधार होता है और उसे एनर्जी देते है। इसे पीने से शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता भी बढ़ जाती है। एलोवेरा के कांटेदार पत्तियों को छीलकर रस निकाला जाता है। 3 से 4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिन-भर शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति बनी रहती है।
बालों और त्वचा की सुंदरता बढ़ाये
एलोवेरा जूस के सेवन से त्वचा में निखार आने लगता है। इसके नियमित सेवन से आपकी त्वचा लंबे समय तक जवां और चमकदार लगती है। एलोवेरा का जूस पीने से त्वचा की खराबी, मुहांसे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों, आखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है। एलोवेरा जूस बालों के लिए भी फायदेमंद है। इसको पीने से बालों में चमक आती है, रूसी दूर हो जाती है और टेक्सचर भी अच्छा हो जाता है। एलोवेरा का जूस मेहंदी में मिलाकर बालों में लगाने से बाल चमकदार व स्वस्थ्य होते हैं।
अच्छा पाचक
एलोवेरा जूस में प्रचुर मात्रा में पाचक तत्व विद्यमान होते हैं। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण यह पेट के रोगो में बहुत फायदा करता है। एलोवेरा जूस के नियमित सेवन से कब्ज की समस्या भी दूर हो जाती है।
डिटॉक्स जूस
हमारे शरीर में मौजूद कई तरह के विषैले तत्व
त्वचा को खराब और बॉडी सिस्टम पर बुरा प्रभाव डालते हैं। इसलिए बॉडी को डिटॉक्स करने की जरूरत होती है। एलोवेरा जूस एक अच्छा डिटॉक्सीफिकेशन करने वाला पेय है।
वजन कम करें
नियमित रूप से एलोवेरा जूस पीने से बढ़ा हुआ वजन कम होने लगता है। और इसे पीने से बार-बार खाने की आदत भी दूर हो जाती है और आपकी पाचन क्रिया भी दुरूस्त रहती है। एलोवेरा जूस में कई पोषक तत्व होते है जो शरीर का कमजोर नहीं होने देते है।
दांतों के लिए लाभकारी
एलोवेरा जूस दांतों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभकारी होता है। इसमें मौजूद
एंटी-माइक्रोवाइल गुण दांतों को साफ और कीटाणु मुक्त रखने में मदद करते है। एलोवेरा जूस को माउथ फ्रेशनर के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। एलोवेरा के जूस को मुंह में भरने से छाले और बहने वाले खून को भी रोका जा सकता है।
आइये अब संक्षेप में जानते है एलोवेरा के गुणों के बारे में…..
* नजले-खांसी में एलोवेरा का रस दवा का काम करता है. इसके पत्ते को भूनकर रस निकाल लें और आधा चम्मच जूस एक कप गर्म पानी के साथ लेने से नजले-खांसी में फायदा होता है.
* जलने या चोट लगने पर एलोवेरा जेल या एलोवेरा को छिलकर लगाने से आराम मिलता है. जली हुई जगह पर एलोवेरा जेल लगाने से छाले भी नहीं निकलते और तीन-चार बार लगाने से जलन भी खत्म हो जाती है.
* एलोवेरा का रस बालों में लगाने से बाल काले, घने और मुलायम रहते हैं.
* एलोवेरा का रस बवासीर, डायबिटीज और पेट की परेशानियों से निजात दिलाने में मदद करता है.
* एलोवेरा से मुहांसे, रूखी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों और आखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है.
* एलोवेरा गंजेपन को भी दूर करने की ताकत रखता है.
* एलोवेरा का जूस पीने से कब्ज की बीमारी दूर होती है.
* एलोवेरा के जूस से शरीर में खून की कमी को दूर किया जा सकता है.
* फटी एड़ियों पर एलोवेरा लगाने से बहुत जल्दी ठीक हो जाती हैं.
* एलोवेरा का जूस ब्लड में हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है.
* एलोवेरा का रस मेहंदी में मिलाकर बालों में लगाने से बाल चमकदार और स्वस्थ होते हैं.
* सरसों के तेल में एलोवेरा के रस को मिलाकर सिर धोनें से पहले लगाने से बालों में चमक आती है.
* एलोवेरा का जूस त्वचा की नमी को बनाए रखता है जिससे त्वचा स्वस्थ दिखाई देती है.
* एलोवेरा को सरसों के तेल में गर्म करके लगाने से जोड़ों के दर्द को कम किया जा सकता है.
* तेज धूप में निकलने से पहले एलोवेरा का रस अच्छी तरह त्वचा पर लगाने से त्वचा पर
सनबर्न का कम असर पड़ता है.
* एलोवेरा को सौंदर्य निखार के लिए हर्बल कॉस्मेटिक प्रोडक्ट जैसे एलोवेरा जैल, बॉडी लोशन, हेयर जैल, स्किन जैल, शैंपू, साबुन में भी इस्तेमाल किया जाता है ।
श्री राजीव दीक्षित जी
राजेंद्र अग्रवाल             

त्वचा एलर्जी को दूर करने के कुछ घरेलू नुस्खे:--

स्किन एलर्जी कई कारणों की वजह से हो सकती है। भले ही वह सूरज, कपड़े या फिर सब्जियों के दा्रा हो। स्किन बहुत संवेदनशील होती है इसलिए उस पर इन सब चीजों का असर बहुत जल्दी पड़ता है। वैसे तो यह समय के साथ अपने आप ठीक हो जाती है, पर इस समय इसका ख्याल रखना भी जरुरी हो जाता है।
एलर्जी दूर करने के घरेलू उपचार
तेल लगाएं
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त्वचा पर गरम नारियल तेल लगाएं और रातभर ऐसे ही लगा रहने दें। यह एलर्जी वाली खराब त्वचा को साफ कर के निकाल देता है और साथ में यह एंटी बैक्टीरियल भी होता है। इसके अलावा आपको सूती कपड़े भी पहनने चाहिये।
नीम पेस्ट
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नीम एंटी बैक्टीरियल होती है इसलिए यह किसी भी त्वचा संबधित बीमारी को दूर कर सकती है। एलर्जी को ठीक करने के लिए नीम की पत्तियों को 6-8 घंटे के लिए पानी में भिगो कर पीस लें। इसको त्वचा पर लगा कर 30 मिनट तक के लिए छोड़ दें और फिर ठंडे पानी से नहा लें।
नहाएं
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यह एक प्रकार का घरेलू नुस्खा है, जिससे स्किन एलर्जी बिल्कुल ठीक हो जाती है। गरम पानी से नहाने से बचना चाहिये क्योंकि इससे और भी ज्यादा बेचैनी, जलन और खुजली पैदा हो सकती है। वहीं पर ठंडा पानी एलर्जी से राहत दिलाता है। इसलिए ठंडे पानी से ही नहाएं।
नींबू का रस
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एलर्जी वाली जगह पर रुई से नींबू का रस लगाएं। इसके अलावा नींबू के रस को आप नारियल तेल में मिला कर भी लगा सकती हैं। इसको लगा कर पूरी रात ऐसे ही रहने दें।
पानी
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खूब सारा पानी पिएं। पानी पीने से शरीर की सारी गंदगी पेशाब बन कर बाहर निकल जाती है। यह स्किन एलर्जी का एक प्राकृतिक इलाज है।
पोस्ता दाना
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मिक्सर में पोस्ता दाना ग्राइंड करें और उसमें नींबू का रस मिलाएं। इस पेस्ट को एलर्जी वाली त्वचा पर लगाए, जिससे यह ठीक हो जाए।
अगर एलर्जी है तो ये मत करिए
1. जिस साबुन का आप नियमित रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं, उसका इस्तेमाल करना बंद कर दें। साबुन के कारण त्वचा रूखी हो जाती है और खुजली बढ़ जाती है।
2. शरीर को खुली हवा लगने दें।
3. त्वचा में खुजली न करें।
4. रोज नहाएं। कोई भी उबटन लगाये साबुन न लगाये ।
श्री राजीव दीक्षित जी
राजेंद्र अग्रवाल

रिफाईड तेल बीमारी का घर

अपने घर से 4 जहर निकाल दीजिये
1 नमक(एबीसीडी कोई भी नाम का आयोडीन युक्त नमक)
2 रिफाइन सोया तेल( एबीसीडी प्रकार के जो कोलेस्ट्रॉल घटाने का दावा करें )
3 चीनी
4 मैदा
क्या उपयोग करे ?
नमक केवल सेंधा नमक जिसे व्रत में भी खाते हैं
नोट- नमक हमेशा खाना बनाते समय ही डालें
खाना बनने के बाद ऊपर से जो नमक डाल के कोई भी चीज खाते हैं उसमें नुक्सान है।
यदि कोई भी चीज में ऊपर से नमक डाल के खाना हो तो
केवल काला नमक डाल के ही खाएं ।
यानि
खाने बनाने में सेंधा नमक डालना है
और
अन्य चीजों में यदि नमक डालना हो तो
केवल काला नमक ही उपयोग करें
उदहारण
छाछ,
सलाद,
फल,
आदि में काला नमक डालें ।
केवल सरसों का तेल
या तिल तेल
या मूंगफली का तेल ही खाएं ।
और कोई सा भी तेल नहीं ।
रिफाइन्ड न खाएं
सोया आयल न खाएं
सूरज मुखी का तेल न खाएं।
डालडा घी न खाएं
राईस ब्रान्ड तेल न खाएं
पामोलिन तेल न खाएं
ऑलिव आयल न खाएं
गंभीर बात सोचने योग्य🤔🤔
जिस तेल, रिफाइंड, डालडा घी, को हम कान में नहीं डाल सकते
सिर में नहीं लगा सकते
नाक में नहीं डाल सकते
किसी भी चोट या अन्य उपचार में प्रयोग नहीं कर सकते उसे
शरीर के अंदर कैसे डाल सकते हैं (कैसे खा सकते हैं)???
सोच कर विचार कीजिये ???
चोट लगती है
सरसों का तेल हल्दी से लगा ते हो या रिफाइड या राइस ब्रान्ड 🤔???
विज्ञापन का दौर चरम पर है
आप को टीवी पर
कुछ भी दिखा दिखा के मूर्ख बना सकते हैं कम्पनी वाले
और इसमें कुछ गद्दार डॉ भी साथ दे रहे हैं 😬
आप अपने विवेक से विचार करो
क्या कभी रिफाईन्ड तेल कान में डाला है आप की माता दादी नानी ने ??
क्या रिफाइन तेल लगाया है कभी आप ने अपने सर में क्या आप की नानी दादी ने कभी डालडा घी से सिर की मालिश करी है ?? नहीं न तो जो तेल हम शरीर के बाहर नहीं लगा सकते उसे टीवी के विज्ञापन के चक्कर में फँस कर खा रहे हैं
सोचो मित्रों गंम्भीरता से सोचो ।
अगर मार्किट में मुझे अपनी दुकान चलानी है तो मुझे कुछ न कुछ अलग दिखाना होगा इस लिए तेल को केमिकल डाल डाल कर फिलटर कर रहे हैं और कुछ् अलग करने के चक्कर में तेल के गुण खराब कर रहे हैं
जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानि कारक है। चीनी सफेद जहर है धीरे धीरे अपने घर से अलविदा करते जाओ और गुड़ का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करो। धीरे धीरे आप आदत बदले नहीं बदलोगे तो नजदी की डॉ महीने में बीपी थाइरोईड मोटापा की दवा देता ही रहेगा अब आप को तय करना है आप ये 4 परिवर्तन करते है या फिर विज्ञापन के जाल में फँसे रहे । खाना बनाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करें, इसमें पोषक तत्व नस्ट नहीं होते । एलुमिनियम और नॉन स्टिक को कहें अलविदा ।

राजेंद्र अग्रवाल

पृथ्वी का अमृत.. तिल का तेल

यदि इस पृथ्वी पर उपलब्ध सर्वोत्तम खाद्य पदार्थों की बात की जाए तो तिल के तेल का नाम अवश्य आएगा और यही सर्वोत्तम पदार्थ बाजार में उपलब्ध नहीं है. और ना ही आने वाली पीढ़ियों को इसके गुण पता हैं. क्योंकि नई पीढ़ी तो टी वी के इश्तिहार देख कर ही सारा सामान ख़रीदती है.
और तिल के तेल का प्रचार कंपनियाँ इसलिए नहीं करती क्योंकि इसके गुण जान लेने के बाद आप उन द्वारा बेचा जाने वाला तरल चिकना पदार्थ जिसे वह तेल कहते हैं लेना बंद कर देंगे.
तिल के तेल में इतनी ताकत होती है कि यह पत्थर को भी चीर देता है. प्रयोग करके देखें.... आप पर्वत का पत्थर लिजिए और उसमे कटोरी के जैसा खडडा बना लिजिए, उसमे पानी, दुध, धी या तेजाब संसार में कोई सा भी कैमिकल, ऐसिड डाल दीजिए, पत्थर में वैसा की वैसा ही रहेगा, कही नहीं जायेगा... लेकिन... अगर आप ने उस कटोरी नुमा पत्थर में तिल का तेल डाल दीजिए, उस खड्डे में भर दिजिये.. 2 दिन बाद आप देखेंगे कि, तिल का तेल... पत्थर के अन्दर भी प्रवेश करके, पत्थर के नीचे आ जायेगा. यह होती है तेल की ताकत, इस तेल की मालिश करने से हड्डियों को पार करता हुआ, हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है. तिल के तेल के अन्दर फास्फोरस होता है जो कि हड्डियों की मजबूती का अहम भूमिका अदा करता है.
और तिल का तेल ऐसी वस्तु है जो अगर कोई भी भारतीय चाहे तो थोड़ी सी मेहनत के बाद आसानी से प्राप्त कर सकता है. तब उसे किसी भी कंपनी का तेल खरीदने की आवश्यकता ही नही होगी. तिल खरीद लीजिए और किसी भी तेल निकालने वाले से उनका तेल निकलवा लीजिए. लेकिन सावधान तिल का तेल सिर्फ कच्ची घाणी (लकडी की बनी हुई) का ही प्रयोग करना चाहिए.
तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। जो तिल से निकलता वह है तैल। अर्थात तेल का असली अर्थ ही है "तिल का तेल".
तिल के तेल का सबसे बड़ा गुण यह है की यह शरीर के लिए आयुषधि का काम करता है.. चाहे आपको कोई भी रोग हो यह उससे लड़ने की क्षमता शरीर में विकसित करना आरंभ कर देता है. यह गुण इस पृथ्वी के अन्य किसी खाद्य पदार्थ में नहीं पाया जाता.
सौ ग्राम सफेद तिल 1000 मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं। बादाम की अपेक्षा तिल में छः गुना से भी अधिक कैल्शियम है।
काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है।
तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।
तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।
तिल में विटामिन  सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है।
इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते। ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है।
तिलबीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।
यह कब्ज भी नहीं होने देता।
तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं।
तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।
सीधा अर्थ यह है की यदि आप नियमित रूप से स्वयं द्वारा निकलवाए हुए शुद्ध तिल के तेल का सेवन करते हैं तो आप के बीमार होने की संभावना ही ना के बराबर रह जाएगी. जब शरीर बीमार ही नही होगा तो उपचार की भी आवश्यकता नही होगी. यही तो आयुर्वेद है.. आयुर्वेद का मूल सीधांत यही है की उचित आहार विहार से ही शरीर को स्वस्थ रखिए ताकि शरीर को आयुषधि की आवश्यकता ही ना पड़े.
एक बात का ध्यान अवश्य रखिएगा की बाजार में कुछ लोग तिल के तेल के नाम पर अन्य कोई तेल बेच रहे हैं.. जिसकी पहचान करना मुश्किल होगा. ऐसे में अपने सामने निकाले हुए तेल का ही भरोसा करें. यह काम थोड़ा सा मुश्किल ज़रूर है किंतु पहली बार की मेहनत के प्रयास स्वरूप यह शुद्ध तेल आपकी पहुँच में हो जाएगा. जब चाहें जाएँ और तेल निकलवा कर ले आएँ.

तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड (mono-unsaturated fatty acid) होता है जो शरीर से बैड कोलेस्ट्रोल को कम करके गुड कोलेस्ट्रोल यानि एच.डी.एल. (HDL) को बढ़ाने में मदद करता है। यह हृदय रोग, दिल का दौरा और धमनीकलाकाठिन्य (atherosclerosis) के संभावना को कम करता है।
कैंसर से सुरक्षा प्रदान करता है-
तिल में सेसमीन (sesamin) नाम का एन्टीऑक्सिडेंट (antioxidant) होता है जो कैंसर के कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के साथ-साथ है और उसके जीवित रहने वाले रसायन के उत्पादन को भी रोकने में मदद करता है। यह फेफड़ों का कैंसर, पेट के कैंसर, ल्यूकेमिया, प्रोस्टेट कैंसर, स्तन कैंसर और अग्नाशय के कैंसर के प्रभाव को कम करने में बहुत मदद करता है।
तनाव को कम करता है-
इसमें नियासिन (niacin) नाम का विटामिन होता है जो तनाव और अवसाद को कम करने में मदद करता है।
हृदय के मांसपेशियों को स्वस्थ रखने में मदद करता है-
तिल में ज़रूरी मिनरल जैसे कैल्सियम, आयरन, मैग्नेशियम, जिन्क, और सेलेनियम होता है जो हृदय के मांसपेशियों को सुचारू रूप से काम करने में मदद करता है और हृदय को नियमित अंतराल में धड़कने में मदद करता है।
शिशु के हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है-
तिल में डायटरी प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों के हड्डियों के विकसित होने में और मजबूती प्रदान करने में मदद करता है। उदाहरणस्वरूप 100ग्राम तिल में लगभग 18 ग्राम प्रोटीन होता है, जो बच्चों के विकास के लिए बहुत ज़रूरी होता है।
गर्भवती महिला और भ्रूण (foetus) को स्वस्थ रखने में मदद करता है-
तिल में फोलिक एसिड होता है जो गर्भवती महिला और भ्रूण के विकास और स्वस्थ रखने में मदद करता है।
शिशुओं के लिए तेल मालिश के रूप में काम करता है-
अध्ययन के अनुसार तिल के तेल से शिशुओं को मालिश करने पर उनकी मांसपेशियाँ सख्त होती है साथ ही उनका अच्छा विकास होता है। आयुर्वेद के अनुसार इस तेल से मालिश करने पर शिशु आराम से सोते हैं।
अस्थि-सुषिरता (osteoporosis) से लड़ने में मदद करता है-
तिल में जिन्क और कैल्सियम होता है जो अस्थि-सुषिरता से संभावना को कम करने में मदद करता है।
मधुमेह के दवाईयों को प्रभावकारी बनाता है-
डिपार्टमेंट ऑफ बायोथेक्सनॉलॉजी विनायक मिशन यूनवर्सिटी, तमिलनाडु (Department of Biothechnology at the Vinayaka Missions University, Tamil Nadu) के अध्ययन के अनुसार यह उच्च रक्तचाप को कम करने के साथ-साथ इसका एन्टी ग्लिसेमिक प्रभाव रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को 36% कम करने में मदद करता है जब यह मधुमेह विरोधी दवा ग्लिबेक्लेमाइड (glibenclamide) से मिलकर काम करता है। इसलिए टाइप-2 मधुमेह (type 2 diabetic) रोगी के लिए यह मददगार साबित होता है।
दूध के तुलना में तिल में तीन गुना कैल्शियम रहता है। इसमें कैल्शियम, विटामिन बी और ई, आयरन और ज़िंक, प्रोटीन की भरपूर मात्रा रहती है और कोलेस्टरोल बिल्कुल नहीं रहता है। तिल का तेल ऐसा तेल है, जो सालों तक खराब नहीं होता है, यहाँ तक कि गर्मी के दिनों में भी वैसा की वैसा ही रहता है.
तिल का तेल कोई साधारण तेल नहीं है। इसकी मालिश से शरीर काफी आराम मिलता है। यहां तक कि लकवा जैसे रोगों तक को ठीक करने की क्षमता रखता है। इससे अगर आप महिलाएं अपने स्तन के नीचे से ऊपर की ओर मालिश करें, तो स्तन पुष्ट होते हैं। सर्दी के मौसम में इस तेल से शरीर की मालिश करें, तो ठंड का एहसास नहीं होता। इससे चेहरे की मालिश भी कर सकते हैं। चेहरे की सुंदरता एवं कोमलता बनाये रखेगा। यह सूखी त्वचा के लिए उपयोगी है।
 तिल का तेल- तिल विटामिन ए व ई से भरपूर होता है। इस कारण इसका तेल भी इतना ही महत्व रखता है। इसे हल्का गरम कर त्वचा पर मालिश करने से निखार आता है। अगर बालों में लगाते हैं, तो बालों में निखार आता है, लंबे होते हैं।
जोड़ों का दर्द हो, तो तिल के तेल में थोड़ी सी सोंठ पावडर, एक चुटकी हींग पावडर डाल कर गर्म कर मालिश करें। तिल का तेल खाने में भी उतना ही पौष्टिक है विशेषकर पुरुषों के लिए।इससे मर्दानगी की ताकत मिलती है!
हमारे धर्म में भी तिल के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है, जन्म, मरण, परण, यज्ञ, जप, तप, पित्र, पूजन आदि में तिल और तिल का तेल के बिना संभव नहीं है अतः इस पृथ्वी के अमृत को अपनावे और जीवन निरोग बनावे.🙏

विष तुल्य है रिफाइंड तेल! खाएं घानी का तेल:

आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइंड तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है | कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं | इन्होने चक्कर चलाया और टेलीविजन के माध्यम से जम कर प्रचार किया लेकिन लोगों ने माना नहीं इनकी बात को, तब इन्होने डॉक्टरों के माध्यम से कहलवाना शुरू किया | डॉक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्सन में रिफाइन तेल लिखना शुरू किया कि तेल खाना तो सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना, ये नहीं कहते कि घानी से निकला हुआ शुद्ध सरसों का तेल खाओ, तिल का खाओ या मूंगफली का खाओ, आप सब समझदार हैं समझ सकते हैं |

ये रिफाइन तेल बनता कैसे हैं? मैंने देखा है और आप भी कभी देख लें तो बात समझ जायेंगे | किसी भी तेल को रिफाइन करने में 6 से 7 केमिकल का प्रयोग किया जाता है और डबल रिफाइन करने में ये संख्या 12 -13 हो जाती है | ये सब केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाये हुए हैं प्रयोगशाला में, भगवान का बनाया हुआ एक भी केमिकल इस्तेमाल नहीं होता, भगवान का बनाया मतलब प्रकृति का दिया हुआ जिसे हम आर्गेनिक कहते हैं | तेल को साफ़ करने के लिए जितने केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं सब Inorganic हैं और Inorganic केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका combination जहर के तरफ ही ले जाता है | इसलिए रिफाइन तेल, डबल रिफाइन तेल गलती से भी न खाएं | फिर आप कहेंगे कि, क्या खाएं ? तो आप शुद्ध तेल खाइए, तिल का, सरसों का, मूंगफली का, तीसी का, या नारियल का | अब आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में बास बहुत आती है और दूसरा कि शुद्ध तेल बहुत चिपचिपा होता है | हम लोगों ने जब शुद्ध तेल पर काम किया या एक तरह से कहे कि रिसर्च किया तो हमें पता चला कि तेल का चिपचिपापन उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है | तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाला जाता है तो पता चला कि ये तो तेल ही नहीं रहा, फिर हमने देखा कि तेल में जो बास आ रही है वो उसका प्रोटीन कंटेंट है, शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों में ईश्वर का दिया हुआ प्रोटीन सबसे ज्यादा है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है, तो तेलों में जो बास आप पाते हैं वो उसका Organic content है प्रोटीन के लिए | 4 -5 तरह के प्रोटीन हैं सभी तेलों में, आप जैसे ही तेल की बास निकालेंगे उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल दिया तो उसका Fatty Acid गायब | अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो वो तेल नहीं पानी है, जहर मिला हुआ पानी | और ऐसे रिफाइन तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात (Heart Attack), पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज हो जाना, आदि, आदि | जिन-जिन घरों में पुरे मनोयोग से रिफाइन तेल खाया जाता है उन्ही घरों में ये समस्या आप पाएंगे, अभी तो मैंने देखा है कि जिनके यहाँ रिफाइन तेल इस्तेमाल हो रहा है उन्ही के यहाँ Heart Blockage और Heart Attack की समस्याएं हो रही है |
बेल चालित तेल घानी
जब हमने सफोला का तेल लेबोरेटरी में टेस्ट किया, सूरजमुखी का तेल, अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया तो AIIMS के भी कई डोक्टरों की रूचि इसमें पैदा हुई तो उन्होंने भी इसपर काम किया और उन डोक्टरों ने जो कुछ भी बताया उसको मैं एक लाइन में बताता हूँ क्योंकि वो रिपोर्ट काफी मोटी है और सब का जिक्र करना मुश्किल है, उन्होंने कहा “तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है, और उसी को हम खा रहे हैं तो तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है |” आप बोलेंगे कि तेल के माध्यम से हमें क्या मिल रहा ? मैं बता दूँ कि हमको शुद्ध तेल से मिलता है HDL (High Density Lipoprotein), ये तेलों से ही आता है हमारे शरीर में, वैसे तो ये लीवर में बनता है लेकिन शुद्ध तेल खाएं तब | तो आप शुद्ध तेल खाएं तो आपका HDL अच्छा रहेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे |अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है | मलेशिया नामक एक छोटा सा देश है हमारे पड़ोस में, वहां का एक तेल है जिसे पामोलिन तेल कहा जाता है, हम उसे पाम तेल के नाम से जानते हैं, वो अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा बिक रहा है, एक-दो टन नहीं, लाखो-करोड़ों टन भारत आ रहा है और अन्य तेलों में मिलावट कर के भारत के बाजार में बेचा जा रहा है| 7 -8 वर्ष पहले भारत में ऐसा कानून था कि पाम तेल किसी दुसरे तेल में मिला के नहीं बेचा जा सकता था लेकिन GATT समझौता और WTO के दबाव में अब कानून ऐसा है कि पाम तेल किसी भी तेल में मिला के बेचा जा सकता है | भारत के बाजार से आप किसी भी नाम का डब्बा बंद तेल ले आइये, रिफाइन तेल और डबल रिफाइन तेल के नाम से जो भी तेल बाजार में मिल रहा है वो पामोलिन तेल है | और जो पाम तेल खायेगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिख कर देने को तैयार हूँ कि वो ह्रदय सम्बन्धी बिमारियों से मरेगा | क्योंकि पाम तेल के बारे में सारी दुनिया के रिसर्च बताते हैं कि पाम तेल में सबसे ज्यादा ट्रांस-फैट है और ट्रांस-फैट वो फैट हैं जो शरीर में कभी dissolve नहीं होते हैं, किसी भी तापमान पर dissolve नहीं होते और ट्रांस फैट जब शरीर में dissolve नहीं होता है तो वो बढ़ता जाता है और तभी हृदयघात होता है, ब्रेन हैमरेज होता है और आदमी पैरालिसिस का शिकार होता है, डाईबिटिज होता है, ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है |
श्री राजीव दीक्षित जी
राजेंद्र अग्रवाल                        

उल्टी और दस्त के घरेलु उपचार:---------------

घर के किसी भी छोटे बड़े सदस्य को उल्टी एवँ दस्त किसी भी वजह से हो सकते हैं जिनमें से बदहजमी सबसे मुख्य है। कभी-कभी सर्दी या गर् लगने, दूषित खानपान से भी उल्टी और दस्त की समस्या हो जाती है ।
उल्टी होने पर नीँबू का रस पानी में घोल कर लेने से शीघ्र ही फायदा होता है ।

1-आप एक दो लौंग, दालचीनी या इलायची मुहँ में रखकर चूसिये यह मसाले उल्टियाँ विरोधक औषधियों होने के कारण उल्टियाँ रोकने में बहुत ही मददगार साबित होते है।
2-तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस शहद के साथ लेने से उल्टी में लाभ मिलता है ।
3-एक चम्मच प्याज का रस पीने से भी उल्टी में लाभ मिलता है ।
4-गर्मियों में यदि बार बार उल्टियाँ आती है तो बर्फ चूसनी चाहिए ।
5-पुदीने के रस को लेने से भी उल्टी में लाभ मिलता है ।
6-धनिये के पत्तों और अनार के रस को थोड़ी थोड़ी देर के बाद बारी-बारी से पीने से भी उल्टी रुक जाती है ।
7-1/4 चम्मच सोंठ एक चम्मच शहद के साथ लेने से उल्टी में शीघ्र आराम मिलता है ।
8-नींबू का टुकड़ा काले नमक के साथ अपने मुंह में रखने से आपको उल्टी महसूस नहीं होती है, रुक जाती है ।
9-आधा चम्मच पिसे हुए जीरे का पानी के साथ सेवन करने से उल्टियों से शीघ्र छुटकारा मिलता है ।
10-एक गिलास पानी में एक चम्मच एप्पल का सिरका डालकर पियें उल्टी में तुरंत आराम मिलेगा ।
11-उल्टियाँ होने से 12 घंटो बाद तक ठोस आहार का सेवन न करें, लेकिन भरपूर मात्रा में पानी और फलों के रस का सेवन करते रहें।
12-तैलीय, मसालेदार, भारी और मुश्किल से पचनेवाले खाद्द्य पदार्थों का सेवन न करें इससे भी उल्टियाँ आती है ।
14-पित्त की उल्टी होने पर शहद और दालचीनी मिलाकर चाटें ।
15-हरर को पीसकर शहद के साथ मिलाकर चाटने से उल्टी बंद होती है|
16-खाना खाने के तुरंत बाद न सोयें। खाने के बाद टहलने की आदत डालें । जब भी सोयें तो अपनी दाहिनी बाज़ू पर सोयें। इससे आपके पेट के पदार्थ मुंह तक नहीं आयेंगे ।
17-दही, भात, को मिश्री के साथ खाने से दस्त में आराम आता है।
18-एक एक चम्मच अदरक , नीबूं का रस काली मिर्च के साथ लेने पर भी दस्त में आराम मिलता है ।
19-सौंफ और जीरे को बराबर-बराबर मिला कर भून कर पीस लें । इसे आधा-आधा चम्मच पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से दस्तों में फायदा मिलता है ।
20-केले, सेब का मुरब्बा और पके केले का सेवन करें दस्त में तुरंत आराम मिलेगा ।
21-दस्त आने पर अदरक के टुकड़े को चूसे या अदरक की चाय पियें पेट की मरोड़ भी शांत होती है और दस्त में भी आराम मिलता है ।
22-दस्त रोकने के लिए चावल के माड़ में हल्का नमक और काली मिर्च डालकर उसका सेवन करें दस्त रुक जायेंगे ।
23-जामुन के पेड़ की पत्तियाँ पीस कर उसमें सेंधा नमक मिला कर 1/4 चम्मच दिन में दो बार लेने से दस्त रुक जाते है ।
24-दस्त आने पर दूध और उससे बनी हुई चीजों का सेवन कतई भी ना करें ।

श्री राजीव दीक्षित जी
राजेंद्र अग्रवाल

Friday, 13 January 2017

जानिए सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के उपचार के बारे में

स्पोंडिलोसिस का इलाज
खाने में कैल्शियम और विटामीन डी को शामिल कर काफी हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही स्पोंडिलोसिस से बचने के लिए अपने चलने और बैठने के तरीके पर भी ध्यान देना जरूरी है। कुछ अन्य सावधानियां और उपाय निम्न हैं:
स्पोंडिलोसिस से पीड़ित लोग गर्दन के नीचे बड़ा तकिया न रखें। उन्हें पैरों के नीचे भी तकिया नहीं रखना चाहिए।
पौष्टिक भोजन खाएं, विशेषकर ऐसा भोजन जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो।
हमेशा कमर सीधी करके बैठें।
पैदल चलने की कोशिश करें। इससे बोन मास  बढ़ता है। शारीरिक रूप से सक्रिय रहें।
नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
चाय और कैफीन का सेवन कम करें।
जीवनशैली में बदलाव लाएं।
ऐसी मेज और कुर्सी का प्रयोग करें, जिन पर आपको झुक कर न बैठना पड़े।
धूम्रपान न करें और तंबाकू न चबाएं।
हमेशा आरामदायक बिस्तर पर सोएं। इस बात का ध्यान रखें कि बिस्तर न तो बहुत सख्त हो और न ही बहुत नर्म।
स्पांडलाइसिस के घरेलू इलाज
सर्वाइकल स्पांडलाइसिस उम्र बढ़ने के साथ गर्दन के जोड़ की हड्डी-उपास्थि के घिसने के कारण होती है। यह गर्दन के हड्डी के डिस्क पलटने, लिगामेंट में फ्रैक्चर से भी हो सकता है। इसमें काफी असहनीय दर्द और पीड़ा होती है। गर्दन काफी भारी और कड़ा महसूस होने लगती है। कंधे से लेकर गर्दन और सिर तक में दर्द होती है।
बांहों की मांसपेशियों से लेकर हाथों की उंगलियों तक में दर्द की संवेदनशीलता महसूस की जाती है। 60 के बाद यह किसी को भी हो सकता है। हालांकि खराब जीवनशैली, बैठने-खड़ा होने के गलत पोस्चर और अनुवांशिक कारणों से यह कभी भी
अटैक कर सकता है। आइए जानते हैं
स्पांडलाइसिस से लड़ने के घरेलू इलाज।
तिल के बीज
तिल में कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, विटामिन के और डी काफी मात्रा में पाई जाती है जो हमारे हड्डी और मांसपेशियों के सेहत के लिए काफी जरुरी है। स्पांडलाइसिस के दर्द में भी तिल काफी कारगर है। तिल के गर्म तेल से गर्दन की हल्की मालिश 5 से 10 मिनट तक करें, फिर वहां गर्म पानी की पट्टी डालें, काफी आराम मिलेगा और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।
गर्म और ठंडे पानी की पट्टी
गर्दन के प्रभावित क्षेत्र जहां दर्द हो और कड़ापन महसूस होता हो वहां पहले गर्म पानी और बाद में ठंडे पानी की पट्टी से दबाव डालें। गर्म पानी की पट्टी से ब्लड सर्कुलेशन तेज होगा और मांसपेशियों का खिंचाव कम होगा और दर्द से राहत मिलेगी। ठंडे पानी का पट्टी से सूजन कम होगा। गर्म पानी की पट्टी 2 से 3 मिनट तक रखें और ठंडे पानी की पट्टी 1 मिनट। इसे 15 मिनट पर दोबारा करें।
लहसुन
लहसुन में दर्द निवारक गुण होता है और यह
सूजन को भी कम करता है। सुबह खाली पेट पानी के साथ कच्चा लहसुन नियमित खाएं, काफी फायदा होगा। तेल में लहसुन को पका कर गर्दन में मालिश भी किया जा सकता है, इससे दर्द में काफी राहत मिलेगी।
नियमित व्यायाम
अगर आप नियमित रुप से गर्दन और बांह की कसरत करते रहें तो स्पांडलाइसिस के दर्द से आऱाम मिलेगा। अपने सिर को दाएं-बांए और उपर-नीचे घुमाते रहें। अपने गर्दन को दाएं और बांए कंधे पर बारी-बारी से झुकाएं। दस मिनट तक यह व्यायाम रोजाना 2 से 3 बार करें। काफी आराम मिलेगा। आप हल्के
एरोबिक्स जैसे स्वीमिंग भी आधे घंटे तक रोज कर सकते हैं, इससे गर्दन की स्पांडलाइसिस में आराम मिलेगा।
हल्दी
हल्दी असहनीय दर्द को चूसने में सबसे कारगर साबित हुई है। इतना ही नहीं यह
मांसपेशियों के खिचांव को भी ठीक करता है। एक ग्लास गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी डाल कर पीएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।
सेंधा नमक की पट्टी या स्नान
नियमित रुप से सेंधा नमक की पट्टी या इससे स्नान करने से स्पांडलाइसिस के दर्द में काफी आराम मिलता है। सेंधा नमक में
मैग्नीशियम की मात्रा ज्यादा होने से यह शरीर के पीएच स्तर को नियंत्रित करता है और गर्दन की अकड़ और कड़ेपन को कम करता है। आधे ग्लास पानी में दो चम्मच सेंधा नमक मिला कर पेस्ट बना लें और उसे गर्दन के प्रभावित क्षेत्र में लगाएं, थोड़ी देर के बाद काफी राहत मिलेगी। या गुनगुने पानी में दो कप सेंधा नमक डाल कर रोजाना स्नान करें, काफी फायदा मिलेगा।
और भी हैं कई टिप्स
सर्वाइकल कॉलर गर्दन में लगा कर ऑफिस या दुकान जाएं।
शारीरिक श्रम कम करें या इससे परहेज ही कर लें। भारी सामान एकदम नहीं उठाएं
प्रोटीन, विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस जिसमें ज्यादा हो वैसे ही भोजन करें।
सलाद और हरी सब्जी का सेवन ज्यादा करें।
रात में चैन की नींद सोने का प्रयास करें।
तला-भुना और मसालेदार खानों से परहेज करें।
शराब और धूम्रपान को बाय-बाय करें।
सुबह शाम भोजन के बाद थोड़ी मात्रा में हरीताकी खाएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ कम होगी।
हमेशा हल्के और मुलायम तकिए पर सोएं, तकिए को बदलें नहीं।
सही पोस्चर में बैठे और खड़ा रहें।

श्री राजीव दीक्षित जी
राजेंद्र अग्रवाल

चिकित्सा और सावधानिया - राजीव दीक्षित Rajiv Dixit मित्रो बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी पूरा पढ़िये ।

आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर मे जितने भी रोग होते है वो त्रिदोष: वात, पित्त, कफ के बिगड़ने से होते है । वैसे तो आज की तारीक मे वात,पित कफ को पूर्ण रूप से समझना सामान्य वुद्धि के व्यक्ति के बस की बात नहीं है । लेकिन आप थोड़ा समझना चाहते है तो इतना जान लीजिये ।

सिर से लेकर छाती के मध्य भाग तक जितने रोग होते है वो कफ के बिगड़ने के कारण होते है ,और छाती
के मध्य से पेट खत्म होने तक जितने रोग होते है तो पित्त के बिगड़ने से होते है और उसके नीचे तक जितने रोग होते है वो वात (वायु )के बिगड़ने से होते है । लेकिन कई बार गैस होने से सिरदर्द होता है तब ये वात बिगड़ने से माना जाएगा । ( खैर ये थोड़ा कठिन विषय है )

जैसे जुकाम होना ,छींके आना ,खांसी होनाये कफ बिगड़ने के रोग है तो ऐसे रोगो मे आयुवेद मे तुलसी लेने को कहा जाता है
क्यों कि तुलसी कफ नाशक है ,
ऐसे ही पित्त के रोगो के लिए जीरे कापानी लेने को कहा जाता है क्योंकि जीरापित नाशक है ।
इसी तरह मेथी को वात नाशक कहा जाता है लेकिन मेथी ज्यादा लेने से ये वात तो संतुलित हो जाता है लेकिन ये पित को बढ़ा देती है ।
महाऋषि वागभट जी कहते है की आयुर्वेद ज़्यादातर ओषधियाँ वात ,पित या कफ नाशक होती है लेकिन त्रिफला ही एक मात्र  ऐसे ओषधि है जो वात,पित ,कफ तीनों को एक साथ
संतुलित करती है
वागभट जी इस त्रिफला की इतनी प्रशंसा करते है की उन्होने आयुर्वेद मे 150 से अधिक सूत्र मात्र त्रिफला पर
ही लिखे है । की त्रिफला को इसके साथ लेंगे तो ये लाभ होगा त्रिफला को उसके साथ लेंगे तो ये लाभ होगा ।
त्रिफला का अर्थ क्या है ?
त्रिफला = तीन फल
कौन से तीन फल ??
1) आंवला
2) बहेडा
3) हरड़
इन तीनों से बनता है त्रिफला चूर्ण ।
वागभट जी त्रिफला चूर्ण के बारे मे और बताते है कि त्रिफला चूर्ण मे तीनों फलो की मात्रा कभी समानय नहीं होनी चाहिए । ये अधिक उपयोगी नहीं होता (आज कल बाज़ारों मे मिलने वाले लगभग सभी त्रिफला
चूर्ण मे तीनों फलों की मात्रा बराबर होती है )
त्रिफला चूर्ण हमेशा 1:2:3 की मात्रा मे
ही बनाना चाहिए
अर्थात मान लो आपको 200 ग्राम त्रिफला चूर्ण बनाना है
तो उसमे
हरड चूर्ण होना चाहिए = 33.33 ग्राम
बहेडा चूर्ण होना चाहिए= 66.66 ग्राम
और आमला चूर्ण चाहिए 99.99 ग्राम
तो इन तीनों को मिलाने से बनेगा सम्पूर्ण आयुर्वेद मे बताई हुई विधि का त्रिफला चूर्ण । जो की शरीर के लिए बहुत ही लाभकारी है ।
वागभट जी कहते है त्रिफला का सेवन अलग-अलग
समय करने से भिन्न-भिन्न परिणाम आते है ।
रात को जो आप त्रिफला चूर्ण लेंगे तो वो रेचक है अर्थात (सफाई
करने वाला)
पेट की सफाई करने वाला ,बड़ी आंत की सफाई करने वाला शरीर के सभी अंगो की सफाई करने वाला ।
कब्जियत दूर करने वाला 30-40 साल पुरानी कब्जियत को भी दूर कर देता है ये त्रिफला चूर्ण ।
और सुबह त्रिफला लेने को पोषक कहा गया , अर्थात अगर आपको पोषक तत्वो की पूर्ति करनी है
वात-पित कफ को संतुलित रखना है तो आप त्रिफला सुबह लीजिये सुबह का त्रिफला पोषक का काम करेगा !
और अगर आपको कब्जियत मिटानी है तो त्रिफला चूर्ण रात को लीजिये
त्रिफला कितनी मात्रा मे लेना है ?? किसके साथ लेना है
रात को कब्ज दूर करने के लिए त्रिफला ले रहे है तो एक टी स्पून (आधा बड़ा चम्मच) गर्म पानी के साथ लें और ऊपर से दूध पी लें
सुबह त्रिफला का सेवन करना है तो शहद या गुड़ के साथ लें तीन महीने त्रिफला लेने के बाद 20 से
25 दिन छोड़ दें फिर दुबारा सेवन शुरू कर सकते हैं । इस प्रकार त्रिफला चूर्ण आपके बहुत से रोगो का उपचार कर सकता है
इसके अतिरिक्त अगर आप राजीव भाई द्वारा बताए आयुर्वेद के नियमो का भी पालन करते हो तो ये त्रिफला और भी अधिक और शीघ्र लाभ पहुंचाता है
जैसे मेदे से बने उत्पाद बर्गर ,नूडल ,पिजा आदि ना खाएं ये कब्ज का बहुत बड़ा कारण है ,रिफाईन तेल कभी ना खाएं ,हमेशा शुद सरसों ,नारियल ,मूँगफली आदि का तेल खाएं ,सेंधा नमक का उपयोग करें ।

श्री राजीव दीक्षित
राजेंद्र अग्रवाल

सर्दियों में सिर्फ एक टुकड़ा गुड़ खाइए और देखिए ये हैरतअंगेज़ फायदे....

गन्ने के रस से बनने वाले गुड़ को देसी चॉकलेट भी कहा जा सकता है। मीठा-मीठा गुड़ न सिर्फ स्वाद में लाजवाब होता है बल्कि इसके ढेर सारे फायदे भी होते हैं।
अपनी गर्म तासीर के कारण ये सर्दियों में आपको गर्माहट देता है। आपने देखा होगा कि कई लोग खाने के बाद छोटा टुकड़ा गुड़ का खा लेते हैं, ऐसा इसलिए कि ये खाने को पचाने में भी मददगार होता है। आइये हम आपको बताते हैं गुण के भी फायदों के बारे में।

1) गले की खराश दूर करे
सर्दियों के मौसम में अगर आपको अक्सर गले की खराश हो जाती है तो गुड़ आपके लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। गुड़ को अदरक के साथ गर्म करके खाने से गले की खराश दूर होती है। आइंदा आपके गले में खराश हो, तो दवाई खाने से पहले अदरक-गुड़ का ये देसी फार्मूला ज़रूर ट्राई कर लेना।

2) जोड़ों का दर्द दूर करे
सर्दियों में जोड़ों के दर्द की समस्या बढ़ जाती है। गुड़ आपको इस दर्द से राहत दिला सकता है। आप गुड़ को अदरक के साथ खा सकते हैं या चाहे तो एक ग्लास दूध के साथ भी आप इसे ले सकते हैं। गठिया रोग के मरीज़ों को तो सर्दियों में नियमित रूप से गुड़ खाना ही चाहिए।
3) पाचन तंत्र के लिए अच्छा
जिन लोगों को पाचन की समस्या हो, उन्हें हर बार खाने के बाद छोटा टुकड़ा गुड़ खा लेना चाहिए। गुड़ पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। इसे खाने से पेट में गैस नहीं बनती और ना ही कब्ज की शिकायत रहती है।
4) पीरिड्स के दर्द से राहत
पीरिड्स के दौरान अक्सर महिलाएं दर्द और तकलीफ के कारण चिड़चिड़ी हो जाती हैं। गुड़ आपको इस चिड़-चिड़ेपन से दूर रखता है और दर्द से भी राहत दिलाता है। पीरियड्स के दौरान दिन में 3-4 बार थोड़ा थोड़ा गुड़ खाएं।

5) ब्लड प्रेशर कंट्रोल करे
ब्लड प्रेशर के मरीज़ों के लिए गुड़ खाना बहुत लाभकारी होता है। दरअसल गुड़ में सोडियम और पोटेशियम पाए जाते हैं। ये शरीर में एसिड की मात्रा को कंट्रोल करने में सहायक होते हैं जिस वजह से ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है।
6) लिवर स्वस्थ बनाए
आपने सोचा भी नहीं होगा कि गुड़ लिवर को स्वस्थ भी बनाता है। ये हमारे खून से हानिकारक टॉक्सिन को बाहर निकालता है और शरीर में रक्त प्रवाह बेहतर बनाता है। अगर आपका लिवर कमज़ोर है, आपको लिवर की कोई न कोई समस्या रहती है तो आपको रोज़ाना गुड़ खाना चाहिए।
7) एनीमिया दूर करे
हमारे देश की ज्यादातर महिलाओं को एनीमिया है। एनीमिया में खून में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। इस कमी को गुड़ खाकर दूर किया जा सकता है। दरअसल हीमोग्लोबिन की कमी को आयरन से दूर किया जा सकता है और गुड़ आयरन का बहुत अच्छा स्रोत है। 
                                        
गुड़ देशी लाएं, काला या पिघला हुआ।दुकानदार से माँगे देगा। केमिकल युक्त गुड़ का कोई फायदा नहीं है जी। केमिकल वाला गुड़ एकदम सफेद एवम कड़क आता है।

राजेंद्र अग्रवाल                        

अलसी - एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक भोजन

अलसी कुछ सावधानियाँ

अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है।

- ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।

- आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।

- अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।

- अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।

- अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है।

- सिम का मतलब सेरीन या शांति, इमेजिनेशन या कल्पनाशीलता और मेमोरी या स्मरणशक्ति तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन या एकाग्रता, क्रियेटिविटी या सृजनशीलता, अलर्टनेट या सतर्कता, रीडिंग या राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी या शैक्षणिक क्षमता और डिवाइन या दिव्य है।

- त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है।

- लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है।

- जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया उपचार है अलसी। ­­ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।

- कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।

- अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।

- 1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

अलसी सेवन का तरीकाः- हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।

अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .

अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।

इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।

अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।

इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।

बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।

अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।

इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।

डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो) .                                    

राजेंद्र अग्रवाल

होमियोपेथी इलाज ! पथरी का

अब होमियोपेथी मे एक दवा है ! वो आपको
किसी भी होमियोपेथी के दुकान
पर मिलेगी उसका नाम हे BERBERIS VULGARIS
ये दवा के आगे लिखना है MOTHER TINCHER ! ये
उसकी पोटेंसी हे|
वो दुकान वाला समझ जायेगा| यह दवा होमियोपेथी की दुकान से ले आइये|
(ये BERBERIS VULGARIS दवा भी पथरचट नाम
के पोधे से बनी है बस फर्क इतना है ये dilutions form मे हैं पथरचट पोधे का botanical name BERBERIS
VULGARIS ही है )
अब इस दवा की 10-15 बूंदों को एक चौथाई (1/ 4) कप गुण गुने पानी मे मिलाकर दिन मे चार बार
(सुबह,दोपहर,शाम और रात) लेना है | चार बार अधिक से अधिक
और कमसे कम तीन बार|इसको लगातार एक से डेढ़
महीने तक लेना है कभी
कभी दो महीने भी लग जाते है |
इससे जीतने भी stone है
,कही भी हो गोलब्लेडर gall
bladder )मे हो या फिर किडनी मे हो,या युनिद्रा के
आसपास हो,या फिर मुत्रपिंड मे हो| वो सभी स्टोन को
पिगलाकर ये निकाल देता हे|
99% केस मे डेढ़ से दो महीने मे ही
सब टूट कर निकाल देता हे कभी कभी
हो सकता हे तीन महीने
भी हो सकता हे लेना पड़े|तो आप दो महिने बाद
सोनोग्राफी करवा लीजिए आपको पता चल
जायेगा कितना टूट गया है कितना रह गया है | अगर रह गया
हहै तो थोड़े दिन और ले लीजिए|यह दवा का साइड
इफेक्ट नहीं है |
________
ये तो हुआ जब stone टूट के निकल गया अब दोबारा भविष्य मे
यह ना बने उसके लिए क्या??? क्योंकि कई लोगो को बार बार
पथरी होती है |एक बार stone टूट के
निकल गया अब कभी दोबारा नहीं आना
चाहिए इसके लिए क्या ???
इसके लिए एक और होमियोपेथी मे दवा है CHINA 1000|

प्रवाही स्वरुप की इस दवा के एक
ही दिन सुबह-दोपहर-शाम मे दो-दो बूंद
सीधे जीभ पर डाल दीजिए|
सिर्फ एक ही दिन मे तीन बार ले
लीजिए फिर भविष्य मे कभी
भी स्टोन नहीं बनेगा|

वजन कम करे बगैर व्यायाम के : आयुर्वेदिक "फैट फाइटर" विशेष "Detox" चााय

■ "30 दिनों में 4 इंच पेट कम करे, इस घरेलु चाय से" आइये जाने कैसे..?

■ यह एक आयुर्वेदिक "फैट फाइटर" विशेष "Detox" चायहै।

■ यह पाचन शक्ति बहुत मजबूत करता ही है, साथ ही जमा चर्बी को पिघहला देता है, इसके महीने भर सेवन से पेट 4 इंच कम हो जाता हे।

"Detox चाय" सुबह 4 से 5 कप पानी उबाल लें.

अब पानी में नीचे लिखी   सामग्री का आधा-आधा चम्मच लो और उस पर ढक्कन रखकर 6-10 मिनट तक  उबलने दे।

पानी  5  कप
साबुत जीरा        
साबुत धनिया बीज
साबुत सौंफ बीज
साबुत दालचीनी

अब जब चाय उबल जाए तो इसे छानकर रोजाना सुबह शाम पिए।

एक महीने में आप पेट और जांघों की चर्बी को 4 इंच तक कर देंगे।

आप अपना अनुभव ज़रूर बताएं।

नेचुरोपैथी उपाय।                            

राजेंद्र अग्रवाल।             

– कॉर्न के उपचार(પગ મા કણી)

हल्दी

हल्दी Corns को दूर करने के लिए बहुत ही उपयोगी होता है क्योकि हल्दी एक Anti-inflammatory का काम करता है | हल्दी और शहद को मिला कर गाढ़ा पेस्ट बना ले फिर इस पेस्ट को corn पे लगा कर इसे सूखने के लिए छोड़ दे | इस उपाय को रोजन सुबह शाम करने से corn से जल्द छुटकारा मिलता है |

निम्बू

निम्बू के रस में 2 लोंग को डाल कर कुछ देर के लिए छोड़ दे | अब कुछ देर के बाद लोंग को निकल कर निम्बू के रस को corn में लगा कर हल्का मालिश कर इसे सूखने के लिए छोड़ दे और फिर इसे साफ पानी से धो ले |
Pumice Stone

एक बड़े से पतिले में थोड़े गुन गुने पानी में अपने corn वाले हिस्से को डुबो कर रखे जब corn हल्का नर्म हो जाय तो इसे Pumice Stone से हल्का –हल्का scrub करे | ऐसा करने से पैरो से corn हट जाते है |

Baking Soda

Baking soda एक natural exfoliating agent का कम करता है जो की हमारे dead skin को remove करने में helpful होता है | एक बड़े से पतिले में गुन गुने पानी भर ले फिर उसमे 2 spoon baking soda मिला कर 10 से 15 मिनट तक अपने पैरो को भिगों ले | अब effected area को pumice stone से scrub कर dead skin को remove करें |
तारपीन का तेल

तारपीन का तेल corn को दूर करने के लिए बहुत अच्छा antiseptic माना जाता है | तारपीन का तेल skin में बहुत जल्दी प्रवेश करता है | एक साफ कपडे में ice को लपेट कर 2 से 3 मिनट तक corn वाले area में scrub करते रहें | अबे corn वाले area को अच्छे से सुखा कर उसमे तारपीन का तेल से हलका मालिश कर इसमें पट्टी बांध कर रात भर छोड़ दे , और फिर सुबह हलके गुन गुने पानी से इसे धो ले | इस प्रक्रिया को रोजाना करने से corn के problem से जल्द छुटकारा मिल सकता है |
एरण्ड का तेल

एरण्ड के तेल को castor-oil भी बोला जाता है, इसे लेकर corn वाले area में धीरे –धीरे 2 से 3 मिनट तक मालिश करते रहे ताकि तेल corn में शोषित / सोख होजाए | ऐसा करने से 3 से 4 सप्ताह में corn बिलकुल खत्म हो जाएगा |              

राजेंद्र अग्रवाल

राजीव दीक्षित Rajiv Dixit बथुआ --------

इन दिनों दिनों बाज़ार में खूब बथुए का साग आ रहा
है।
- बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के
नाम से जाना जाता है बथुआ एक ऐसी सब्जी या
साग है, जो गुणों की खान होने पर भी बिना
किसी विशेष परिश्रम और देखभाल के खेतों में स्वत:
ही उग जाता है। एक डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा
कितने ही गुणों से भरपूर है। बथुआ के परांठे और
रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते हैं बथुआ का
शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला, शुक्र
तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह तीनों दोषों को
शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन करता है |
विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित, बवासीर
तथा कृमियों पर अधिक प्रभावकारी है|
- इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग के
लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए इसका 10-15
ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है .
- यह कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है .
-किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द या सूजन हो
; तो इसके बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है .
इसका साग भी लिया जा सकता है .
- सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके
बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .
- गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए
.
- एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में
पानी मिलाकर पिलायें .
- अगर लीवर की समस्या है , या शरीर में गांठें हो गई
हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का
काढ़ा पिलायें .
- पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो
तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस
मिलाकर लें . शीतपित्त की परेशानी हो , तब भी
इसका रस पीना लाभदायक रहता है .
- सामान्य दुर्बलता बुखार के बाद की अरुचि और
कमजोरी में इसका साग खाना हितकारी है।
- धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग खाना
लाभकारी है।
- बथुआ को साग के तौर पर खाना पसंद न हो तो
इसका रायता बनाकर खाएं।
- बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन
शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर की शिथिलता
मिटाता है। लिवर के आसपास की जगह सख्त हो,
उसके कारण पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम
बथुआ के बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ होता
है।
- सिर में अगर जुएं हों तो बथुआ को उबालकर इसके
पानी से सिर धोएं। जुएं मर जाएंगे और सिर भी साफ
हो जाएगा।
- बथुआ को उबाल कर इसके रस में नींबू, नमक और
जीरा मिलाकर पीने से पेशाब में जलन और दर्द नहीं
होता।
- यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, भोजन में रुचि बढ़ाने
वाला पेट की कब्ज मिटाने वाला और स्वर (गले) को
मधुर बनाने वाला है।
- पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब
खुल कर आता है।
- इसका साग खाने से बवासीर में लाभ होता है।
- कच्चे बथुआ के एक कप रस में थोड़ा सा नमक
मिलाकर प्रतिदिन लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
श्री राजीव दीक्षित जी
राजेंद्र अग्रवाल

बहुत ही चमत्कारी दवा:

250 ग्राम मैथीदाना
100 ग्राम अजवाईन
50 ग्राम काली जीरी (ज्यादा जानकारी के लिए नीचे देखे)

उपरोक्त तीनो चीजों को साफ-सुथरा करके हल्का-हल्का सेंकना(ज्यादा सेंकना नहीं) तीनों को अच्छी तरह मिक्स करके मिक्सर में पावडर बनाकर कांच की शीशी या बरनी में भर लेवें ।

रात्रि को सोते समय एक चम्मच पावडर एक गिलास पूरा कुन-कुना पानी के साथ लेना है। गरम पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है। यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति ले सकतें है।

चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में जमा पडी गंदगी(कचरा) मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी । पूरा फायदा तो 80-90 दिन में महसूस करेगें, जब फालतू चरबी गल जाएगी, नया शुद्ध खून का संचार होगा । चमड़ी की झुर्रियाॅ अपने आप दूर हो जाएगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्तिवाला व सुंदर बन जायेगा ।

‘‘फायदे’’
1. गठिया दूर होगा और गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा ।
2. हड्डियाँ मजबूत होगी ।
3. आॅख का तेज बढ़ेगा ।
4. बालों का विकास होगा।
5. पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति।
6. शरीर में खुन दौड़ने लगेगा ।
7. कफ से मुक्ति ।
8. हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी ।
9. थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तहर दौड़ते जाएगें।
10. स्मरण शक्ति बढ़ेगी ।
11. स्त्री का शारीर शादी के बाद बेडोल की जगह सुंदर बनेगा ।
12. कान का बहरापन दूर होगा ।
13. भूतकाल में जो एलाॅपेथी दवा का साईड इफेक्ट से मुक्त होगें।
14. खून में सफाई और शुद्धता बढ़ेगी ।
15. शरीर की सभी खून की नलिकाएॅ शुद्ध हो जाएगी ।
16. दांत मजबूत बनेगा, इनेमल जींवत रहेगा ।
17. नपुसंकता दूर होगी।
18. डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज की जो दवा लेते है वह चालू रखना है। इस चूर्ण का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा । जिंदगी निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और आयुष्ययवर्धक बनेगी । जीवन जीने योग्य बनेगा ।

कुछ लोग कलौंजी को काली जीरी समझ रहे है जो कि गल्त है काली जीरी अलग होती है जो आपको पंसारी/करियाणा की दुकान से मिल जाएगी जिसके नाम इस तरह से है

हिन्दी कालीजीरी, करजीरा।
संस्कृत अरण्यजीरक, कटुजीरक, बृहस्पाती।
मराठी कडूकारेलें, कडूजीरें।
गुजराती कडबुंजीरू, कालीजीरी।
बंगाली बनजीरा।
अंग्रेजी पर्पल फ्लीबेन।

सोयाबीन के बारें मे ये बातें जरूर जान लें । बहुत महत्वपूर्ण जानकारी । जरूर पढ़ें !

मित्रो आज से 40-45 वर्ष पहले भारत मे कोई सोयाबीन नहीं खाता था !
फिर इसकी खेती भारत मे कैसे होनी शुरू हुई ??

ये जानने से पहलों आपको मनमोहन सिंह द्वारा किए गए एक समझोते
के बारे मे जानना पड़ेगा !

मित्रो इस देश मे 1991 के दौर मे globalization के नाम पर ऐसे-ऐसे समझोते हुये कि आप चोंक जाएंगे ! एक समझोते के कहानी पढ़ें बाकि विडियो में है ! तो समझौता ये था कि एक देश उसका नाम है होललैंड वहां के सुअरों का गोबर (टट्टी) वो भी 1 करोड़ टन भारत लाया जायेगा ! और डंप किया जायेगा !
ऐसा समझोता मनमोहन सिंह ने एक बार किया था !

जब मनमोहन सिंह को पूछ गया के यह समझोता क्यूँ किया ????

तब मनमोहन सिंह ने कहा होललैंड के सुअरों का गोबर (टट्टी) quality में बहुत बढ़िया है !

फिर पूछा गया कि अच्छा ये बताये की quality में कैसे बढ़िया है ???

तो मनमोहन सिंह ने कहा कि होललैंड के सूअर सोयाबीन खाते है इस लिए बढ़िया है !!

मित्रो जैसे भारत में हम लोग गाय को पालते है ऐसे ही हालेंड के लोग सूअर पालते
है वहां बड़े बड़े रेंच होते है सुअरों कि लिए ! लेकिन वहाँ सूअर मांस के लिए पाला जाता है !
सूअर जितना सोयाबीन खाएगा उतना मोटा होगा ,और उतना मांस उसमे से निकलेगा ।

तो फिर मनमोहन सिंह से पूछा गया की ये हालेंड जैसे देशो मे सोयाबीन जाता कहाँ से है ???

तो पता चला भारत से ही जाता है !! और मध्यपरदेश मे से सबसे ज्यादा जाता है !!!

मित्रो पूरी दुनिया के वैज्ञानिक कहते अगर किसी खेत में आपने 10 साल सोयाबीन उगाया तो 11 वे साल आप वहां कुछ नहीं उगा सकते ! जमीन इतनी बंजर हो जाती है !

अब दिखिए इस मनमोहन सिंह ने क्या किया !???

होललैंड के सुअरों को सोयाबीन खिलाने के लिए पहले मध्यप्रदेश में सोयाबीन कि खेती करवाई !

खेती कैसे करवाई ??

किसानो को बोला गया आपको सोयाबीन की फसल का दाम का ज्यादा दिया जाएगा !
तो किसान बेचारा लालच के चक्कर मे सोयाबीन उगाना शुरू कर दिया !
और कुछ डाक्टरों ने रिश्वत लेकर बोलना शुरू कर दिया की ये सेहत के लिए बहुत अच्छी है
आदि आदि !

तो इस प्रकार भारत से सोयाबीन होलेंड जाने लगी ! ताकि उनके सूअर खाये उनकी चर्बी बढ़े और मांस का उत्पादन ज्यादा हो !

और बाद मे होललैंड के सूअर सोयाबीन खाकर जो गोबर (टट्टी) करेगे वो भारत में लाई जाएगी ! वो भी एक करोड़ टन सुअरों का गोबर(टट्टी ) ऐसा समझोता मनमोहन सिंह ने लिया !

और ये समझोता एक ऐसा आदमी करता है जिसको इस देश में best finance minster का आवार्ड दिया जाता है !
और लोग उसे बहुत भारी अर्थशास्त्री मानते है !! शायद मनमोहन सिंह के दिमाग में भी यही गोबर होगा !

मित्रो दरअसल सोयाबीन मे जो प्रोटीन है वो एक अलग किस्म का प्रोटीन है उस प्रोटीन को शरीर का एसक्रिटा system बाहर नहीं निकाल पाता और वो प्रोटीन अंदर इकठ्ठा होता जाता है !

जो की बाद मे आगे जाकर बहुत परेशान करता है ! प्रोटीन के और भी विकल्प हमारे पास है ! जैसे उरद की दाल मे बहुत प्रोटीन है आप वो खा सकते है ! इसके अतिरिक्त और अन्य दालें है !! मूँगफली है,काला चना है आदि आदि ।

और अंत मे एक और बात मित्रो आपके घर मे अगर दादी या नानी हो तो आप उन्हे पूछे की क्या उनकी माता जी ने उनको कभी सोयाबीन बनाकर खिलाया था ??
आपको सच सामने आ जाएगा !!

ये सारा सोयाबीन का खेल इस लिए खेला गया है !

कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए

कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए


सरसो का तेल खाए (बिना रिफाइंड कच्ची घानी का)
सेंधा नमक खाए

चाय
चीनी मैदा बन्द


लौकी
तोरी रोज एक समय खाए


1 महीने लोकी का जूस 1 कप काला नमक 6 7 तुलसी की पत्ती डाल कर बनाए

और खाली पेट पिए




अनार का जूस सुबह पिए ब्लोकेज खोल देता हे। रोज ले 1 साल तक।या
400 ग्राम गाजर
50 ग्राम पत्तागोभी
1/2 शिमला मिर्च
तीनो का जूस लेने से भी ब्लोकेज खुल जाते हैं।
नारियल पानी नीबूं के साथ शाम को ले।जोड़ो में दर्द हे तो दोपहर को ले।
राजेन्द्र अग्रवाल

Wednesday, 11 January 2017

गर्भाशय में सूजन...कारण और उपचार

परिचय:-
ऋतुकालीन (माहवारी) असावधानियों का कुप्रभाव यदि गर्भाशय को प्रभावित करता है तो उसमें शोथ (सूजन) उत्पन्न हो जाती है। इसमें रोगी महिला को बहुत अधिक कष्ट उठाना पड़ता है। गर्भाशय की सूजन हो जाने पर स्त्रियों को हल्का बुखार रहता है तथा इस रोग के कारण उनके गर्भाशय में सूजन भी हो जाती है। इस रोग के कारण अनेक प्रकार के रोग स्त्रियों को हो जाते हैं जो इस प्रकार हैं- सिर में दर्द, भूख न लगना, कमर तथा पेट के निचले भाग में दर्द और योनि के भाग में खुजली होना आदि।

लक्षण:

गर्भाशय की सूजन होने पर महिला को पेडू में दर्द और जलन होना सामान्य लक्षण हैं, किसी-किसी को दस्त भी लग सकते हैं तो किसी को दस्त की हाजत जैसी प्रतीत होती है किन्तु दस्त नहीं होता है। किसी को बार-बार मूत्र त्यागने की इच्छा होती है। किसी को बुखार और बुखार के साथ खांसी भी हो जाती है। यदि इस रोग की उत्पन्न होने का कारण शीत लगना हो तो इससे बुखार की तीव्रता बढ़ जाती है।

गर्भाशय (बच्चेदानी) की सूजन हो जाने का कारण -

· भूख से अधिक भोजन सेवन करने के कारण स्त्री के गर्भाशय में सूजन आ जाती है।
· पेट में गैस तथा कब्ज बनने के कारण गर्भाशय में सूजन हो जाती है।
· अधिक तंग कपड़े पहनने के कारण भी गर्भाशय में सूजन हो सकती है।
· पेट की मांसपेशियों में अधिक कमजोरी आ जाने के कारण तथा व्यायाम न करने के कारण या अधिक सख्त व्यायाम करने के कारण भी गर्भाशय में सूजन हो सकती है।
· औषधियों का अधिक सेवन करने के कारण भी गर्भाशय में सूजन हो सकती है।
· अधिक सहवास (संभोग) करने के कारण भी गर्भाशय में सूजन हो सकती है।
· गलत खान-पान के कारण गर्भाशय में सूजन हो सकती है।
· प्रसव के दौरान सावधानी न बरतने के कारण भी गर्भाशय में सूजन हो सकती है।
प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

· गर्भाशय में सूजन हो जाने पर स्त्री रोगी को चार से पांच दिनों तक फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए, फिर इसके बाद बिना पका संतुलित आहार लेना चाहिए।
· गर्भाशय में सूजन से पीड़ित स्त्री को कभी भी नमक, मिर्चमसाला वाला, तली भुनी चीजें तथा मिठाईयां आदि नहीं खानी चाहिए।
· गर्भाशय में सूजन हो जाने पर स्त्री के पेट पर मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए। इसके बाद एनिमा देनी चाहिए और फिर गर्म कटिस्नान कराना चाहिए। इसके बाद टब में नमक डालकर पन्द्रह से बीस मिनट तक स्त्री को इसमें बैठाना चाहिए।🌹🌹🌹🌹

घरेलू उपचार :-

नीम
नीम, सम्भालू के पत्ते और सोंठ सभी का काढ़ा बनाकर योनि मार्ग (जननांग) में लगाने से गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।
बादाम रोगन
बादाम रोगन एक चम्मच, शर्बत बनफ्सा 3 चम्मच और खाण्ड पानी में मिलाकर सुबह के समय पीएं तथा बादाम रोगन का एक फोया गर्भाशय के मुंह पर रखें इससे गर्मी के कारण उत्पन्न गर्भाशय की सूजन ठीक हो जाती है।
बजूरी शर्बत या दीनार
बजूरी या दीनार को दो चम्मच की मात्रा में एक कप पानी में सोते समय सेवन करना चाहिए। इससे गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।
अशोक
अशोक की छाल 120 ग्राम, वरजटा, काली सारिवा, लाल चन्दन, दारूहल्दी, मंजीठ प्रत्येक को 100-100 ग्राम मात्रा, छोटी इलायची के दाने और चन्द्रपुटी प्रवाल भस्म 50-50 ग्राम, सहस्त्रपुटी अभ्रक भस्म 40 ग्राम, वंग भस्म और लौह भस्म 30-30 ग्राम तथा मकरध्वज गंधक जारित 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी औषधियों को कूटछानकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। फिर इसमें क्रमश: खिरेंटी, सेमल की छाल तथा गूलर की छाल के काढ़े में 3-3 दिन खरल करके 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लेते हैं। इसे एक या दो गोली की मात्रा में मिश्रीयुक्त गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसे लगभग एक महीने तक सेवन कराने से स्त्रियों के अनेक रोगों में लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की सूजन, जलन, रक्तप्रदर, माहवारी के विभिन्न विकार या प्रसव के बाद होने वाली दुर्बलता इससे नष्ट हो जाती है।
पानी
गर्भाशय की सूजन होने पर पेडू़ (नाभि) पर गर्म पानी की बोतल को रखने से लाभ मिलता है।
एरण्ड
एरण्ड के पत्तों का रस छानकर रूई भिगोकर गर्भाशय के मुंह पर 3-4 दिनों तक रखने से गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।
चिरायता
चिरायते के काढ़े से योनि को धोएं और चिरायता को पानी में पीसकर पेडू़ और योनि पर इसका लेप करें इससे सर्दी की वजह से होने वाली गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।

राजेंद्र अग्रवाल

एसिडिटी को चुटकी में गायब

स्वास्थ भारत की और छोटा सा कदम .......
क्या आप जानते हैं, एसिडिटी की दवा से हो सकती हैं आपकी किडनी खराब।
जब हम खाना खाते हैं तो इस को पचाने के लिए शरीर में एसिड बनता हैं। जिस की मदद से ये भोजन आसानी से पच जाता हैं। ये ज़रूरी भी हैं। मगर कभी कभी ये एसिड इतना ज़्यादा मात्रा में बनाता हैं के इसकी वजह से
सर दर्द, सीने में जलन और पेट में अलसर और अलसर के बाद कैंसर तक होने की सम्भावना हो जाती हैं।
ऐसे में हम नियमित ही घर में इनो या पीपीआई (प्रोटॉन पंप इनहिबिटर्स) दवा का सेवन करते रहते हैं। मगर आपको जान कर आश्चर्य होगा के ये दवाये सेहत के लिए बहुत खतरनाक हैं। पीपीआई ब्लड में मैग्नीशियम की कमी कर देता है। अगर खून पर असर पड़ रहा है तो किडनी पर असर पड़ना लाज़मी है। जिसका सीधा सा अर्थ की ये दवाये हमारी सेहत के लिए खतरनाक हैं।

हमने कई ऐसे मूर्ख लोग भी देखे हैं जो एसिडिटी होने पर कोल्ड ड्रिंक पेप्सी या कोका कोला पीते हैं ये सोच कर के इस से एसिडिटी कंट्रोल होगा। ऐसे लोगो को भगवान ही बचा सकता हैं।
तो ऐसी स्थिति में कैसे करे इस एसिडिटी का इलाज
आज हम आपको बता रहे हैं भयंकर से भयंकर एसिडिटी का चुटकी बजाते आसान सा इलाज।
ये इलाज आपकी सोच से कई गुना ज़्यादा कारगार हैं। तो क्या हैं ये उपचार।
ये हर रसोई की शान हैं। हर नमकीन पकवान इसके बिना अधूरा हैं। ये हैं आपकी रसोई में मौजूद जीरा। जी हाँ जीरा।

कैसे करे सेवन
जब भी आपको एसिडिटी हो जाए कितने भी भयंकर से भयंकर एसिडिटी हो आपको बस जीरा कच्चा ही चबा चबा कर खाना हैं। एसिडिटी के हिसाब से आधे से एक चम्मच (ढाई से पांच ग्राम) जीरा खाए।
इसके 10 मिनट बाद गुनगुना पानी पी ले। आप देखेंगे के आपकी समस्या ऐसे गायब हो गयी जैसे गधे के सर से सींग।
ये उपरोक्त नुस्खा मैंने बहुत लोगो पर आजमाया हैं। और उनका अनुभव ऐसा हैं के जैसे जादू। तो आप भी ये आजमाए।

चाय पीने के दुष्प्रभाव ☕

दो सौ वर्ष पहले भारतीय घर में चाय नहीं होती थी, लेकिन आज कोई भी घर आये अतिथि को पहले चाय पूछता है। ये बदलाव अंग्रेजों की देन है। कई लोग ऑफिस में दिन भर चाय लेते रहते है., यहाँ तक की उपवास में भी चाय लेते है । किसी भी डॉक्टर के पास जायेंगे तो वो शराब - सिगरेट - तम्बाखू छोड़ने को कहेगा , पर चाय नहीं,
क्योंकि यह उसे पढ़ाया नहीं गया और वह भी खुद इसका गुलाम है. परन्तु किसी अच्छे वैद्य के पास जाओगे तो वह पहले सलाह देगा चाय ना पियें।

चाय की हरी पत्ती पानी में उबाल कर पीने में कोई बुराई नहीं परन्तु जहां यह फर्मेंट हो कर काली हुई सारी बुराइयां उसमे आ जाती है।

हमारे गर्म देश में चाय और गर्मी बढ़ाती है, पित्त बढ़ाती है। चाय के सेवन करने से शरीर में उपलब्ध
विटामिन्स नष्ट होते हैं। इसके सेवन से स्मरण शक्ति में दुर्बलता आती है।


1. चाय का सेवन रक्त आदि की वास्तविक उष्मा को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

२. दूध से बनी चाय का सेवन आमाशय पर बुरा प्रभाव डालता है और पाचन क्रिया को क्षति पहुंचाता है।

 ३. चाय में उपलब्ध कैफीन हृदय पर बुरा प्रभाव डालती है, अत: चाय का अधिक सेवन प्राय: हृदय के रोग को उत्पन्न करने में सहायक होता है।

 ४. चाय में कैफीन तत्व छ: प्रतिशत मात्रा में होता है जो रक्त को दूषित करने के साथ शरीर के अवयवों को कमजोर भी करता है।

५. चाय पीने से खून गन्दा हो जाता है और चेहरे पर लाल फुंसियां निकल आती है।

६. जो लोग चाय बहुत पीते है उनकी आंतें जवाब दे जाती है. कब्ज घर कर जाती है और मल निष्कासन में कठिनाई आती है।

७. चाय पीने से कैंसर तक होने
की संभावना भी रहती है।

८. चाय से स्नायविक गड़बडियां होती हैं, कमजोरी और पेट में गैस भी।

९. चाय पीने से अनिद्रा की शिकायत भी बढ़ती जाती है।

१०. चाय से न्यूरोलाजिकल गड़बड़ियां आ जाती है।

 ११. चाय में उपलब्ध यूरिक एसिड से मूत्राशय या मूत्र नलिकायें निर्बल
हो जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप चाय का सेवन करने वाले
व्यक्ति को बार-बार मूत्र आने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

१२. इससे दांत खराब होते है. - रेलवे स्टेशनों या टी स्टालों पर बिकने वाली चाय का सेवन यदि न करें तो बेहतर होगा क्योंकि ये बरतन को साफ किये बिना कई बार इसी में चाय बनाते रहते हैं जिस कारण कई बार चाय विषैली हो जाती है। चाय को कभी भी दोबारा गर्म करके न पिएं तो बेहतर होगा।

१३. बाज़ार की चाय अक्सर अल्युमीनियम के भगोने में
खदका कर बनाई जाती है। चाय के अलावा यह अल्युमीनियम भी घुल कर पेट की प्रणाली को बर्बाद करने में कम भूमिका नहीं निभाता है।

१४. कई बार हम लोग बची हुई चाय को थरमस में डालकर रख देते हैं इसलिए भूलकर भी ज्यादा देर तक थरमस में रखी चाय का सेवन न करें। जितना हो सके चायपत्ती को कम उबालें तथा एक बार चाय बन जाने पर इस्तेमाल की गई चायपत्ती को फेंक दें।

१५. शरीर में आयरन अवशोषित ना हो पाने से एनीमिया हो जाता है. - इसमें मौजूद कैफीन लत लगा देता है. लत हमेशा बुरी ही होती है.

१६. ज़्यादा चाय पिने से खुश्की आ जाती है.आंतों के स्नायु भी कठोर बन जाते हैं।

१७. चाय के हर कप के साथ एक या अधिक चम्मच शक्कर ली जाती है जो वजन बढाती है।

१८. अक्सर लोग चाय के साथ नमकीन , खारे बिस्कुट ,पकौड़ी आदि लेते है. यह विरुद्ध आहार है. इससे त्वचा रोग होते है.।

१९. चाय से भूख मर जाती है, दिमाग सूखने लगता है, गुदा और वीर्याशय ढीले पड़ जाते हैं। डायबिटीज़ जैसे रोग होते हैं। दिमाग सूखने से उड़ जाने वाली नींद के कारण आभासित कृत्रिम स्फूर्ति को स्फूर्ति मान लेना, यह बड़ी गलती है।

२०. चाय-कॉफी के विनाशकारी व्यसन में फँसे हुए लोग स्फूर्ति का बहाना बनाकर हारे हुए जुआरी की तरह व्यसन में अधिकाधिक गहरे डूबते जाते हैं। वे लोग शरीर, मन, दिमाग और पसीने की कमाई को व्यर्थ गँवा देते हैं और भयंकर व्याधियों के शिकार बन जाते हैं।

21. चाय का सेवन लिवर पर बुरा प्रभाव डालता है।

चाय का विकल्प

पहले तो संकल्प कर लें की चाय नहीं पियेंगे. दो दिन से एक हफ्ते तक याद आएगी ; फिर सोचोगे अच्छा हुआ छोड़ दी.एक दो दिन सिर दर्द हो सकता है.

सुबह ताजगी के लिए गर्म पानी ले. चाहे तो उसमे आंवले के टुकड़े मिला दे. थोड़ा एलो वेरा मिला दे.

 सुबह गर्म पानी में शहद निम्बू डाल के पी सकते है. - गर्म पानी में तरह तरह की पत्तियाँ या फूलों की पंखुड़ियां डाल कर पी सकते है. जापान में लोग ऐसी ही चाय पीते है और स्वस्थ और दीर्घायु होते है.

कभी पानी में मधुमालती की पंखुड़ियां , कभी मोगरे की , कभी जासवंद , कभी पारिजात आदि डाल कर पियें.

गर्म पानी में  लेमन ग्रास ,   तेजपत्ता , पारिजात ,आदि के पत्ते या अर्जुन की छाल या इलायची , दालचीनी इनमे से एक कुछ डाल कर पियें ।

मोटापे से छुटकारे के लिए रात को एक चम्मच जीरा एक गिलास पानी में भिगो दे
सुबह तब तक गर्म करे जब आधा रह जाये तो चाय की तरह पि ले और जीरा चबा चबा कर खा ले

Tuesday, 10 January 2017

छाती की बीमारी एवं खांसी का अचूक उपचार

मित्रों खांसी और छाती की बीमारी यूँ तो आम बिमारियों में से एक मानी जाती है जो किसी को भी हो सकती है ! परन्तु यह बीमारी बढ़ते बढ़ते भयंकर रूप ले सकती है !
श्री राजीव भाई दीक्षित ने भारतीय चिकित्सा पद्धति के द्वारा कई बीमारियों का घरेलु और पूर्ण रूप से स्वदेशी इलाज बताया है ! आइये आज आपको राजीव जी के द्वारा बताया गया छाती और खांसी की बीमारी का अचूक इलाज बताते है !
गले में किनती भी ख़राब से ख़राब बीमारी हो, कोई भी इन्फेक्शन हो, इसकी सबसे अच्छी दवा है हल्दी।
जैसे गले में दर्द है, खरास है, गले में खासी है, गले में कफ जमा है, गले में टोनसीलाईटिस हो गया ! इन सब बीमारियों में आधा चम्मच कच्ची हल्दी का रस लेना और मुंह खोल कर गले में डाल देना और फिर थोड़ी देर चुप होके बैठ जाना तो ये हल्दी गले में निचे उतर जाएगी लार के साथ !
एक खुराक में ही सब बीमारी ठीक होगी दुबारा डालने की जरुरत नही ! ये छोटे बच्चो को तो जरुर करना ! बच्चो के टोन्सिल जब बहुत तकलीफ देते है न तो हम ऑपरेशन करवाके उनको कटवाते है ! वो करने की जरुरत नही है हल्दी से सब ठीक होता है !
गले और छाती से जुडी हुई कुछ बीमारिया है जैसे खासी ! इसका एक इलाज तो कच्ची हल्दी का रस है जो गले में डालने से तुरंत ठीक हो जाती है चाहे कितनी भी जोर की खासी हो !
दूसरी दवा है अदरक, ये जो अदरक है इसका छोटा सा टुकड़ा मुह में रख लो और टॉफ़ी की तरह चूसो खांसी तुरंत बंद हो जाएगी ! अगर किसी को खांसते खांसते चेहरा लाल पड़ गया हो तो अदरक का रस ले लो और उसमे थोड़ा पान का रस मिला लो दोनों एक एक चम्मच और उसमे मिलाना थोड़ा सा गुड या शहद ! अब इसको थोडा गरम करके पी लेना तो जिसको खासते खासते चेहरा लाल पड़ा है उसकी खासी एक मिनट में बंद हो जाएगी !
और एक अच्छी दवा है , अनार का रस गरम करके पियो तो खासी तुरन्त ठीक होती है !
काली मिर्च (गोल मिर्च) इसको मुह में रख के चबा लो, पीछे से गरम पानी पी लो तो खासी बंद हो जाएगी, काली मिर्च को चुसो तो भी खासी बंद हो जाती है !
छाती की कुछ बीमारियाँ जैसे दमा, अस्थमा, ब्रोंकिओल अस्थमा, इन तीनो बीमारी का सबसे अच्छा दवा है गाय मूत्र ! आधा कप गोमूत्र पियो सबेरे का ताजा ताजा तो दमा ठीक होता है, अस्थमा ठीक होता है, ब्रोंकिओल अस्थमा ठीक होता है ! और गोमूत्र पीने से टीबी भी ठीक हो जाता है , लगातार पांच छः महीने पीना पड़ता है !
दमा अस्थमा का और एक अच्छी दवा है दालचीनी, इसका पाउडर रोज सुबह आधे चम्मच खाली पेट गुड या शहद मिलाके गरम पानी के साथ लेने से दमा अस्थमा ठीक कर देती है !
श्री राजीव दीक्षित जी
राजेंद्र अग्रवाल 10.1.2017

अलसी कुछ सावधानियाँ

एक सज्जन आए और शिकायत करने लगे, सर आजकल अलसी खाने के बाद उबकाई आने लगती है। पहले तो ऐसा नहीं होता था। मैंने पूछा आप अलसी कैसे ले रहे हो? कहने लगे एक किलो अलसी लाया था, पीस कर डिब्बे में भर दी। रोज दो चम्मच पानी के साथ ले रहा हूँ। अरे भले मानुस यही तो गलती कर दी आपने। हम हमेशा लोगों को हिदायत देते हैं कि अलसी को अगर रोज ताजा पीस कर लें तो अच्छा। अगर ऐसा नहीं कर सकें तो दो-तीन दिन के लिए खाने योग्य मात्रा में ही पीसे इससे ज्यादा नहीं। पीसने के बाद अलसी आक्सीजन के सम्पर्क में आकर खराब होने लगती है। मुख शुद्धि का नुस्खा भी ज्यादा नहीं बनाएं। कुछ लोग तिल्ली, सौंफ और अलसी को इकट्टा पीस कर डिब्बे में भर लेते हैं और खाते रहते हैं। यह मिश्रण भी अल्प मात्रा में तैयार करें। खत्म होने पर पुनः बना लें। बाजार में इसके पाऊच भी मिलते हैं। पता नहीं वे कितने पुराने हो चुके होते हैं। अलसी को आलस बर्दाश्त नहीं है। इसलिए आलस न करें, तो अच्छा। वर्ना वांछित लाभ की जगह हानि हो सकती है। अलसी को साफ करते समय उसमें अलसी के टूटे हुए टुकड़े हों तो उन्हें भी चुन-चुन कर फेंक देना चाहिए।

1. कुछ लोगों की शिकायत है कि अलसी खाने से उन्हें कब्ज होने लगता है। ऐसा शायद इसलिए होता है कि वे पानी कम पीते हैं। शुरू में टाइट मोशन की शिकायत हो सकती है। दो-चार दिन में यह ठीक हो जाती है। ऐसे व्यक्ति अलसी का दो चम्मच पावडर प्रातःकाल गर्म जल के साथ लें तो अधिक अच्छा रहेगा।

2.जो खून पतला करने वाली दवाएं लेते हैं, उन्हें भी अलसी का सेवन डाक्टर से पूछ कर करना चाहिए। क्योंकि अलसी भी खून को पतला करती है। ऐसे में दवा की मात्रा कम करके फिर अलसी का प्रयोग किया जा सकता है।

3. अलसी की कितनी मात्रा प्रतिदिन लेनी चाहिए, इस बारे में डा.ओपी वर्मा का अभिमत है कि तीस ग्राम यानि तीन चाय चम्मच अलसी प्रतिदिन लेनी चाहिए। मेरा अनुभव इस बारे में अलग है। हर व्यक्ति की केमेस्ट्री जुदा-जुदा होती है। किसी को एक चम्मच तो किसी को तीन चम्मच अलसी की जरूरत हो सकती है। इसलिए व्यक्ति स्वयं तय करे कि उसे कितनी अलसी लेना चाहिए।

4. अलसी भून कर लें या कच्ची यह सवाल भी किया जाता है। दोनों तरह से अलसी ली जा सकती है। अगर भून कर लेते हैं, तो हल्का भूने अधिक नहीं। वैसे डा.योहान बुडविज तो कच्ची अलसी लेने की सिफारिश करती थीं।

5. कुछ लोगों ने सवाल पूछा था कि अलसी अगर पुरानी हो तो उसका सेवन करें या नहीं। मैंने अलसी गुरु डा.ओपी वर्मा से सम्पर्क किया, उनका अनुभव है कि अगर साबुत है तो पुरानी भी खाने में हर्ज नहीं है। साबुत अलसी कईं दिनों तक खराब नहीं होती।

6.कुछ लोगों ने यह सवाल किया कि अलसी की तासीर गर्म होती है। इसलिए इसे गर्मी के दिनों में खाना उचित है अथवा नहीं। मेरा अपना अनुभव है कि इसे गर्मी में भी खाया जा सकता है। मैं तो खाता हूं, मुझे कोई हानि नहीं होती। लेकिन अन्य लोगों के लिए सुझाव है कि वे खाकर देखें साथ ही पानी अधिक पीएं। फिर भी अगर लगे कि उन्हें अलसी से गर्मी में हानि होती है तो सेवन बंद कर दें।

7.एक महाशय ने पूछा कि भूनी हुई साबुत अलसी अगर पीसें नहीं और यूं ही चबा कर खाएं तो क्या हर्ज है। कोई हर्ज नहीं है। अगर आपके दांत सलामत हैं और अच्छी तरह चबा कर खा सकते हैं तो खाएं। लेकिन बिना चबाए निगलें नहीं, वरना वह पचे बिना ऐसे ही निकल जाएगी, क्योंकि म्युसिलेज के कारण अलसी चिकनी होती है।।                                                       

राजेंद्र अग्रवाल

Monday, 9 January 2017

हल्दी के दूध से नुकसान भी हो सकता है। हल्‍दी वाला दूध बनाने का सही तरीका और सावधानि


हल्दी के दूध से नुकसान भी हो सकता है। हल्‍दी वाला दूध बनाने का सही तरीका और सावधानियाँ- 
 
हल्‍दी के दूध के फायदों के बारे में लगभग हम सभी जानते हैं, यह गोल्‍डन मिल्‍क दैनिक आहार में सम्मिलित कर आप कई बीमारियों और संक्रमणों को रोक सकते हैं। आयुर्वेद में तो हल्‍दी के दूध को अमृत माना जाता है। ‘हल्दी दूध’ पर एक सरल वेब खोज ने तो इसे वजन घटाने से लेकर, सर्दी जुकाम और अर्थराइटिस तक कई बीमारियों की रामबाण दवा माना है। लेकिन इसको बनाने की सही विधि से ज्‍यादातर लोग अनजान हैं। आइए इस आयुर्वेदिक औषधि को बनाने की सही विधि के बारे में जानते हैं हल्‍दी दूध बनाने के सही तरीका। हल्दी की एक इंच लंबे टुकड़े को लें। 
● हल्दी पाउडर, हल्‍दी की स्टिक की तरह प्रभावी नहीं होता है, क्‍योंकि पाउडर में संदूषण की संभावना अधिक होती है, इसके अलावा पीसने की प्रक्रिया के दौरान हल्‍दी की गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है। 
● इसलिए एक हल्दी के टुकड़े लेकर उसे क्रश करके इस्‍तेमाल करें। 
● पेपर्कॉर्न यानी मिर्च के दाने फिर थोड़ी से पेपर्कॉर्न यानी मिर्च के दाने क्रश करें। 
● काली मिर्च की जगह सफेद किस्म बेहतर रहती है। 
● सफेद मिर्च यानी दखनी मिर्च आंखों की रोशनी बढ़ाने का काम करती है। अब आधा गिलास दूध और एक कप पानी लेकर उसमें आधी चम्‍मच क्रश हल्‍दी और मिर्च को मिलाकर अच्‍छे से उबाल लें, 20 मिनट तक उबाले। इस मिश्रण को 20 मिनट उबाले, इस समय तक दूध एक कप हो जाएगा। इसलिए इसमें पानी मिलाने की सलाह दी जाती है, क्‍योंकि पानी न मिलाने से दूध 20 मिनट उबालने पर खीर की तरह हो सकता है। और ऐसा पीने में आरामदायक नहीं लगता। शहद या चीनी डालें 
● 20 मिनट उबलने के बाद इस मिश्रण को गैस से उतारकर, इस मिश्रण को छानकर उसमें शहद या चीनी मिला लें, और फिर लें गर्मागर्म हल्‍दी वाले दूध का मजा 
● खांसी के लिए देसी घी मिलाये 
● अगर आप गले में खराश से राहत पाने के लिए इसे ले रहे हैं, तो गर्म हल्‍दी वाला दूध पीने से पहले आधा चम्‍मच देसी घी मिला लें। घी पिघल कर आपके गले पर कोट बनाकर, खांसी से अच्‍छी तरह से राहत देगा कुछ मिनट आराम से बैठकर इस पेय का सुखदायक स्‍वाद और रस्टिक अरोमा आपमें फील गुड फैक्‍टर की वृद्धि करने में मदद करता है। सावधानिया- हल्दी के फायदे हम आपको पहले ही बता चुके हैं. ज्यादातर लोगों को पता होगा कि हल्दी कई तरह की बीमारियों और कमजोरी में फायदेमंद होता है। लंबे समय से ये दवा के तौर पर इस्तेमाल होता आया है। एक अच्छा एंटी-सेप्टिक होने के साथ ही से शोथ-रोधी भी होता है। एक ओर जहां हल्दी स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है वहीं इसके कुछ साइड-इफेक्ट भी हैं। हालांकि हल्दी तभी नुकसान करती है जब वो बहुत अधिक मात्रा में ली जाए.! हल्दी के फायदे जानने के साथ ही आपको इसके नुकसान भी पता होना बहुत जरूरी है  
 
1. गॉल ब्लेडर/पित्ताशय में समस्या अगर आपको पित्ताशय से जुड़ी कोई समस्या है तो हल्दी वाला दूध आपकी इस समस्या को और बढ़ा देगा। अगर आपकी पित्त की थैली में स्टोन है तो आपको हल्दी वाला दूध नहीं पीना चाहिए। 
2. ब्लीडिंग प्रॉब्लम अगर आपको ब्लीडिंग प्रॉब्लम है तो हल्दी वाला दूध आपको नुकसान पहुंचा सकता है। ये ब्लड क्लॉटिंग की प्रक्रिया को कम कर देता है जिससे ब्लीडिंग की समया और अधिक बढ़ सकती है।  
3. मधुमेह मधुमेह की स्थिति में हल्दी में एक रासायनिक पदार्थ करक्यूमिन पाया जाता है। जो ब्लड शुगर को प्रभवित करता है। ऐसे में अगर आपको मधुमेह है तो हल्दी वाला दूध पीने से परहेज करना ही बेहतर होगा।  
4. नपुंसकता का कारण हल्दी, टेस्टोस्टेरॉन के स्तर को कम कर देती हैं। इससे स्पर्म की सक्रियता में कमी आ जाती है। अगर आप अपनी फैमिली प्लान कर रहे हैं तो कोशिश कीजिए कि हल्दी का सेवन संयमित रूप से करें।  
5. आयरन का अवशोषण हल्दी का बहुत अधिक सेवन करने से आयरन का अवशोषण बढ़ जाता है. जिन लोगों में पहले से ही आयरन की कमी है उन्हें बहुत सोच-समझकर हल्दी का सेवन करना चाहिए।  
6. सर्जरी के दौरान जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि हल्दी खून का थक्का जमने नहीं देता है. जिसकी वजह से खून का स्त्राव बढ़ जाता है। अगर आपकी सर्जरी हुई है या फिर होने वाली है तो हल्दी के सेवन से बचें !! राजेंद्र अग्रवाल

पेट के छाले अल्सर दूर करने के घरेलु उपचार--


पेट के छाले अल्सर दूर करने के घरेलु उपचार-- 
 
अमेरिकन gastroenterology के अनुसार छाले पेट से जुडी हुई बहुत common बीमारी है| इसे पेट का अल्सर या अमाशय छाला भी कहते है| यह एक तरह का घाव या चोट होती है जो पेट के अंदर बढती चली जाती है| chale आंत के उपरी भाग में होता है| अमेरिका की एक रिसर्च के अनुसार हर 10 में से 1 इन्सान ulcer की बीमारी से परेशान है| अगर पेट या आंत में छाले या घाव बढ़ने लगते है तब अल्सर की बीमारी से पीढित व्यक्ति को बहुत दर्द होता है| कैसे होते है छाले? हमारे पेट में एक तरह का एसिड होता है जो हमारे खाने को पचाने में मदद करता है| लेकिन ये एसिड विषैला होता है, जो हमारे पेट की परत और आंत इफ़ेक्ट करता है, इस एसिड से बचाने के लिए हमारे पेट में कफ की एक परत पेट और आंत को ढक लेती है| जब पेट कमजोर हो जाता है और आंत के पास ये एसिड आ जाता है तब वहां घाव या chala हो जाता है, इससे पेप्टिक अल्सर (peptic ulcer) उत्पन्न होता है| छाले होने के कारण (Reason of Chale) – ज्यादा शराब पीना ड्रग्स लेना अंदरूनी घाव रेडिएशन थेरेपी अल्सर के लक्षण (Symptoms of Ulcer)– पेट में असहनीय दर्द| पेट में जलन होना सीने और नाभी के बीच जलन या दर्द उल्टी छाले में पेट में होने वाला दर्द कभी थोड़े समय के लिए होता है तो कभी बहुत अधिक देर के लिए| यह बीमारी किसी भी व्यक्ति को किसी भी उम्र में हो सकती है| यह बीमारी मर्दों की अपेक्षा औरतों को जल्दी होती है| इसका पता लगते ही इसका जल्द से जल्द उपचार करना चाहिए, नहीं तो ये जानलेवा भी हो सकती है| छाले का पता लगते ही इसका उपचार आप घर पर ही शुरू कर सकते है| chale का उपचार हम घर पर मौजूद सामग्री से कर सकते है| हम जो home remedy हम आपको अपने आर्टिकल में बता रहे है, वो मुख्यतः पेट की परत की रक्षा एसिड से करते है| अगर आपकी बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है और अगर आप बहुत समय से परेशान है तो घर पर उपचार करने से पहले किसी आयुर्वेद डॉक्टर सलाह भी ले सकते है पेट के छाले अलसर दूर करने के घरेलु उपचार-- केला पेट के छाले के लिए केला बहुत इफेक्टिव होता है| केला में antibactirial कंपाउंड होते है जो इसे बढ़ाने वाले H.pylori कंपाउंड को बढ़ने से रोकता है| पेट में होने वाली एसिडिटी और गैस से भी केला बचाता है| पेट की परत को केला मजबूत बनाता है| केला 2 तरह से उपयोग में ला सकते है| • अल्सर के उपचार के लिए रोज 2-3 केला का सेवन करें| अगर आपको केला पसंद नहीं तो आप इसका मिल्कशेक बनाकर भी पी सकते है| • केले के पतले पतले स्लाइस कर लें, फिर इसे धुप में सूखा लें| अब इसे मिक्सी में पीस कर पाउडर बना लें| अब 2 tbsp इस पाउडर को लें और 1 tbsp इसमें शहद मिलाएं| इस मिक्सचर को दिन में 3 बार खाएं| 1 हफ्ते तक इस प्रक्रिया को करते रहें| आपको ulcer से आराम मिलेगा| मिर्च पाउडर आश्चर्य की बात है कि मिर्च भी किसी बीमारी के उपचार में मदद कर सकती है| लेकिन ये सच है मिर्च का पाउडर छाले के उपचार के लिए उपयोग में लाया जाता है| मिर्च के कुछ उपयोग – • 1 ग्लास गुनगुने पानी में 1/8 tsp मिर्च पाउडर मिलाएं| 2-3 दिनों तक इसे रोज दिन में 2 बार पियें| • आप इसे सूप में डाल कर भी पी सकते है| पत्ता गोभी pet ke chale ke upchar के लिए पत्ता गोभी बहुत अच्छा स्त्रोत है| पत्ता गोभी में लैक्टिक एसिड होता है| यह पेट में जाकर एमिनो एसिड बनाने में मदद करता है, एमिनो एसिड पेट की परत में खून से जाकर मिल जाता है| जिससे पेट की परत सुरक्षित होती है और पेट के छाले से निजात मिलता है| इसके साथ ही पत्तागोभी में विटामिन c होता है, ये भी ulcer की बीमारी से लड़ने में मदद करता है| • आधी पत्तागोभी और 2 गाजर को काटकर थोडा पानी मिलाकर मिक्सी में पीस कर जूस बना लें| अब ½ कप जूस को खाना खाने से पहले और सोने से पहले रोज पिए| कुछ दिन तक रोज ऐसा करें| लेकिन रोज ताजा जूस बनाकर ही पियें| नारियल नारियल में antibactirial क्वालिटी होती है, इसे खाने से छाले के कीटाणु नष्ट हो जाते है| नारियल का दूध और नारियल पानी ये सभी भी chale के रोग को दूर करते है| • 1 हफ्ते तक रोज नारियल का पानी पियें| साथ ही रोज नारियल के कुछ टुकड़ों का सेवन करें| • इसके अलावा आप 1 tbsp नारियल तेल सुबह और रात को 1 हफ्ते तक लें| नारियल तेल में fat(वसा) नहीं होता है| जिससे यह जल्दी पच जाता है| मुलैठी बहुत सारी जगह बताया गया है की ulcer ke upchar के लिए मुलैठी बहुत अच्छा होता है| ये पेट और आंत की मदद करता है जिससे बहुत ज्यादा कफ उत्पन्न होता है जिससे पेट की परत की रक्षा होती है| इसका सेवन करने से अल्सर के दर्द से आराम मिलता है और वो जल्दी ठीक होता है| • 1 कप पानी में 1 tbsp मुलैठी पाउडर को मिलाएं| इसे ढँककर रात भर के लिए रख दें| अगले दिन 1 कप पके हुए चावल में इसे मिलाएं और खाएं| हफ्ते भर ऐसा करें, आपका बहुत जल्दी आराम मिलेगा| • मुलैठी को चाय में डाल कर दिन में 2-3 बार पियें एक हफ्ते तक| मैथी मैथी का उपयोग बहुत से रोगों के उपचार के लिए सदियों से होते आ रहा है| इसका उपयोग छाले के उपचार के लिए भी होता है| मैथी कफ बनाकर पेट की परत की रक्षा करता है| • 2 कप पानी में 1 tbsp मैथी को उबालें, इसे छानकर इसमें थोड़ी सी शहद मिलाएं और पियें| • 1 tbsp मैथी पाउडर को दूध के साथ पिए| • इसके अलावा मैथी की पतियों को पानी में उबालकर उसमें शहद मिलाएं, अब इसे दिन में 2 बार खाएं| शहद सिर्फ शहद खाने से भी हमें अल्सर से आराम मिल सकता है| शहद में ग्लूकोस oxidase होता है जो हाइड्रोजन पेरोक्साइड बनता है| ये पेट के अल्सर के कीटाणु को मारता है, और साथ ही पेट और आंत को साफ करता है| रोज सुबह खाली पेट 2 tbsp शहद का सेवन करें| ये पेट की परत को मजबूत करता है और अल्सर से आराम दिलाता है| लहसून इसमें मौजूद engimes अल्सर के कीटाणु को मारता है| दिन में 1 बार लहसून की 2-3 कलियाँ को पानी के साथ खायं| इसका सेवन कुछ दिनों तक रोज करें| आप chale का इलाज घर पर ही कर सकते है| ये सभी उपचार आपको 1 हफ्ते में ही अपना असर दिखायंगे| अगर आपके छाले बढ़ गए है और तकलीफ ज्यादा है, तो आप डॉक्टर की सलाह जरुर लें और उसके अनुसार उपचार करें| अगर आप किसी और समस्या से परेशान है और उसका घरेलु इलाज जानना चाहते है, तो हमसे शेयर करे| श्री राजीव दीक्षित जी राजेंद्र अग्रवाल

नारियल की जटा से खुनी बवासीर का एक दिन में इला


नारियल की जटा से खुनी बवासीर का एक दिन में इलाज। 
 
अगर आप बवासीर से परेशान हैं चाहे वो खुनी हो चाहे बादी, तो ये प्रयोग आपके लिए रामबाण से कम नहीं हैं। इस प्रयोग से पुरानी से पुरानी बवासीर 1 से 3 दिन में सही हो जाएगी। इस इलाज से एक दिन में ही रक्तस्राव बंद हो जाता है। बड़ा सस्ता व सरल उपाय है। एक बार इसको ज़रूर अपनाये। आइये जाने ये प्रयोग। नारियल की जटा से करे खुनी बवासीर का एक दिन में इलाज। नारियल की जटा लीजिए। उसे माचिस से जला दीजिए। जलकर भस्म बन जाएगी। इस भस्म को शीशी में भर कर ऱख लीजिए। कप डेढ़ कप छाछ या दही के साथ नारियल की जटा से बनी भस्म तीन ग्राम खाली पेट दिन में तीन बार सिर्फ एक ही दिन लेनी है। ध्यान रहे दही या छाछ ताजी हो खट्टी न हो। कैसी और कितनी ही पुरानी पाइल्स की बीमारी क्यों न हो, एक दिन में ही ठीक हो जाती है। यह नुस्खा किसी भी प्रकार के रक्तस्राव को रोकने में कारगर है। महिलाओं के मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव या श्वेत प्रदर की बीमारी में भी कारगर है। हैजा, वमन या हिचकी रोग में यह भस्म एक घूँट पानी के साथ लेनी चाहिए। ऐसे कितने ही नुस्खे हिन्दुस्तान के मंदिरों और मठों में साधु संन्यासियों द्वारा आजमाए हुए हैं। इन पर शोध किया जाना चाहिए। दवा लेने के एक घंटा पहले और एक घंटा बाद तक कुछ न खाएं तो चलेगा। अगर रोग ज्यादा जीर्ण हो और एक दिन दवा लेने से लाभ न हो तो दो या तीन दिन लेकर देखिए। हम आपके लिए भारत के कोने कोने से आयुर्वेद के अनसुने चमत्कार ले कर आते हैं, आप भी इनको शेयर कर के ज़्यादा से ज़्यादा लोगो तक पहुंचाए। और ज़्यादा से ज़्यादा लोगो को पेज लाइक करने के लिए कहे। विशेष 1. बवासीर से बचने के लिए गुदा को गर्म पानी से न धोएं। खासकर जब तेज गर्मियों के मौसम में छत की टंकियों व नलों से बहुत गर्म पानी आता है तब गुदा को उस गर्म पानी से धोने से बचना चाहिए।। 
राजेंद्र अग्रवाल

गाय का घी


🌹👉 गाय की घी 👈🌹 🍁👉 
1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है। 🍁👉 
2.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है। 🍁👉 
3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है। 🍁👉 
4.(20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है। 🍁 
5.गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है। 🍁👉 
6.नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाताहै। 🍁 
7.गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है। 🍁👉 
8.गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है। 🍁👉 
9.गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है। 🍁👉 
10.हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है। 
11.हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी। 🍁👉 
12.गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है। 🍁👉 
13.गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है 
14.गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है। 🍁👉 
15.अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें। 
16.हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा। 
🍁👉17.गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है। 🍁👉 
18.जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है। 🍁👉 
19.देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है। 🍁👉 
20.घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है. 🍁👉 
21.फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है। 🍁 
22.गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है। 🍁👉 
23.सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा। 🍁👉 
24.दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है। 🍁👉 
25.सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा। 🍁👉 
26.यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है ।यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है। 
27.एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। 🍁👉 
28.गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है। 🍁
👉29.गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। 🍁👉 
30.अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है। 
वंदे गौ मातरम्। 🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹